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( ८५ )
में लाभ विषय का प्रश्न किया । उस समय की ग्रह स्थिति के
आधार पर प्रश्नकुण्डली इस प्रकार है :
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यहां लग्नेश सूर्य और लाभेश बुध में किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है । न लाभ स्थान पर चन्द्रमा की दृष्टि है । अतः हमने लग्नेश और लाभेश के गोचरीय क्रम से संचार को पञ्चांग के माध्यम से देखना शुरू किया । १६ अगस्त, १९७५ को सूर्य और
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बुध का योग मिथुन राशि में हुआ तथा १७ अगस्त, १९७५ को चन्द्रमा की दृष्टि लाभ स्थान पर पड़ी उसकी कुण्डली इस प्रकार है :
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अतः निश्चय किया गया कि प्रश्नकर्ता को दि० १७ अगस्त, १६७५ को लाभ होगा ।
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पण्याधीशेनैवं कर्मेशेनैव निवृत्यधीशेन । मृत्युपतिना च योगो लग्नाधीशस्य वक्तव्यः ॥८२॥ तत्तत्स्थानेक्षणतः पण्यविवृद्धिः कर्मवृद्धिश्च । बिबुधैस्तदा निवृत्तिमृत्य्वो भविः परेऽप्येवम् ॥ ८३ ॥ अर्थात् इसी तरह पण्याधीश ( द्वितीयेश ), कर्मेश दशमेश, निवृत्यधीश ( सप्तमेश ) और मृत्युपति ( अष्टमेश ) के साथ लग्नेश का योग हो तथा उन स्थानों पर ( चन्द्रमा या भावेश