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( ८६ ) चन्द्रमा नैसर्गिक दृष्टि से परस्पर शत्रुता रखते हैं। अतः शत्रु ग्रह की बुध पर दृष्टि होने के कारण अनर्थ उत्पन्न होने की सम्भावना कही गयी है। इसी प्रकार पाप ग्रह की दृष्टि भी पाप फलदायक होने के कारण अनर्थादि पाप फलों को उत्पन्न करने वाली है। इसलिए इस योग में बुध की लग्न में स्थिति के प्रभाव से धनादि लाभ और चन्द्रमा या पाप ग्रह की दृष्टि के प्रभाव से अनर्थ होना पूर्णतः तर्कसंगत है। हमारा अनुभव है कि इस योग में सामान्यतया पहिले धन लाभ और बाद में अकारण उपद्रव, मुकदमा, भय, शोक, अपमान, रोग या मृत्यु जैसे अनर्थ उत्पन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, निम्नलिखित कुण्डली देखिये : ___ इस कुण्डली में लग्न में स्वराशिगत बुध पर चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि है। अतः प्रश्नकर्ता को लाटरी के द्वारा प्रचुर धन लाभ हुआ। किन्तु एक सप्ताह के बाद स्कूटर दुर्घटना में उसका पैर टूट गया। फलतः आज वह बैशाखी के सहारे चलता है।
चन्द्रो लग्नपतिर्वा यदि केन्द्र शुभाः स्थिताः।
किंवदन्ती तदा सत्या स्यादसत्या विपर्यये ॥८६॥ __ अर्थात् चन्द्रमा, लग्नेश या शुभ ग्रह यदि केन्द्र में स्थित हो तो अफवाह ठीक होती है। यदि विपरीत हो तो असत्य होती है।
भाष्य : किंवदन्ती (अफवाह) सत्य है या झूठ ? यह जानने के लिए ग्रन्थकार ने इस विशेष योग का निरूपण किया है। यदि चन्द्रमा, लग्नेश या शुभग्रह केन्द्र (१, ४, ७ एवं १० स्थान) में
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