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( ८८ ) इस सर्वमान्य नियम के आधार पर ग्रन्थकार ने लग्नेश की षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश स्थान में स्थिति को अशुभ मानते हुए इसके फल का युक्तियुक्त विचार प्रस्तुत किया है । षष्ठ स्थान शत्रु स्थान कहा गया है । अतः लग्नेश यदि षष्ठ स्थान में स्थित हो, तो व्यक्ति स्वयं अपना शत्रु बन जाता है। अभिप्राय यह है कि इस स्थिति में व्यक्ति अपनी ही गलत हरकतों से अपना कार्य बिगाड़ लेता है। इसी प्रकार अष्टम स्थान मृत्यु स्थान कहा गया है। आत्मा या व्यक्ति का प्रतिनिधि लग्नेश जब इस स्थान में जाएगा, तो मृत्यु होना स्वाभाविक है । यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रसंग में 'मृत्यु' शब्द निधन या शरीरान्त के अर्थ में प्रयुक्त न होकर व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अत: इसका अर्थ नाश, हानि, पतन, अत्यन्त कष्ट या अपमान आदि जानना चाहिए । द्वादश स्थान व्यय भाव कहा गया है अतः लग्नेश यदि इस स्थान में स्थित हो तो व्यय या हानि करता है, यह कहना पूर्णरूपेण तर्क संगत है।
लग्नस्थं चन्द्रजं चन्द्रः ऋरो वा यदि पश्यति ।
धनलाभो भवेदाशु किन्त्वनर्थोऽपि दृश्यते ॥८॥ अर्थात् यदि लग्न में स्थित बुध को चन्द्रमा या पाप ग्रह देखे, तो शीघ्र धन लाभ होता है किन्तु अनर्थ भी दिखलायी पड़ता है।
भाष्य : बुध धन एवं सुवर्णादि का कारक ग्रह है तथा लग्न स्थान स्वभावतः लेने वाला कहा गया है। अतः बुध की लग्न में स्थिति धनादि का लाभ कराती है। साथ ही चन्द्रमा की दष्टि होने से शीघ्र लाभ का योग बनता है। किन्तु बुध और
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