________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २२ ) बुध, शुक्र एवं शनि । शनि प्रकृति से पाप ग्रह है। अतः उसकी राशि में स्थित राहु शुभ फल नहीं दे सकता। अपितु मित्र की राशि में स्थित होने के कारण वह पाप फल न देता हुआ उदासीन-सा रहता है। किन्तु बुध राहु का मित्र होने के साथ शुभ ग्रह है। अतः जैसे सज्जन शीलवान एवं सदाचारी मित्र के सम्पर्क मात्र से दुष्ट व्यक्ति अपनी स्वाभाविक दुष्टता छोड़कर सन्मार्ग पर चलता है । ठीक उसी प्रकार राहु भी बुध की राशि मिथुन एवं कन्या के सम्पर्क में आकर अपने पाप प्रभाव को छोड़कर कुछ शुभ फल देने लगता है । शुक्र की राशियों में राहु का ऐसा ही फल अनुक्त होते हुए भी मानना चाहिए। ५. अथ केतुस्थितिद्वारम्
राहुच्छाया स्मृतः केतुर्यत्र राशौ भवेदयम् । तस्मात्सप्तमके केतुः राहुः स्याद्यत्र चांशके ॥२१॥ तस्मादंशे सप्तमे स्यात्केतोरंशो नवांशकः।
त्रिशांशो भागशब्देन पारम्पर्यमिदं गुरोः ॥२२॥ . . अर्थात केतु राहु की छाया कहा गया है । अतः जिस राशि पर राहु स्थित होता है उससे ७वीं राशि में केतु रहता है। जितने अंश पर राहु होता है, उससे ७वीं राशि पर उतने ही अंश पर केतु रहता है। (फलितशास्त्र में सामान्यतया) अंश शब्द से नवमांश और भाग शब्द से त्रिशांश का ग्रहण होता है, ऐसा गुरुजनों की परम्परा से ज्ञात हुआ है।
भाष्य : राहु और केतु, सूर्य और चन्द्रमा की कक्षाओं के सम्पात बिन्दु हैं, जिनको गणित-ज्योतिष (Astronomy) में चन्द्रपात कहते हैं। इन दोनों का कोई विम्ब न होने के कारण
For Private and Personal Use Only