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भाष्य : यह भाव व्यय का प्रतिनिधि है। अतः दान, विवाह, मनोरथ एवं खेती आदि आवश्यक कार्यों पर व्यय के साथ हानि, चोरी, राजदण्ड आदि अशुभ व्ययों का भी प्रतिनिधित्व करता है । इसके अतिरिक्त बन्धन चाचा, मामी, यात्रा नेत्र एवं पैर का भी विचार इससे किया जाता है।' ८. अथ इष्टकाल ज्ञानद्वारम्
भागं वारिधिवारिराशिशशिषु प्राहुमगाद्यबुधाः, षटके बाणकृपीटयोनि विधुषु स्यात्कर्कटाये पुनः। पादैः सप्तभिरन्वितैःप्रथमकं मुक्त्वा दिनाद्य दले,
हित्वं कां घटिकां परे च सततं दत्त्वष्टकालं वदेत् ॥५५॥ अर्थात् शरीर की छाया को अपने पाँव से नाप कर उसमें सात जोड़ कर एक घटावें, यह भाज्य कहा गया है। मकरादि सात राशियों में सूर्य स्थित हो (उत्तरायण हो) तो १४४ से और कर्कादि सात राशियों में स्थित हो (दक्षिणायन हो) तो १३५ से भाग दें। प्राप्त लब्धि में मध्यान्ह से पहिले का समय हो, तो एक घटाने से और अपरान्ह का समय होतो एक जोड़ने से घटयात्मक इष्टकाल कहना चाहिए।
भाष्य : सुदूरतम प्राचीन काल में जब घटीयन्त्रों का अभाव था, तब छाया के आधार पर ही इष्टकाल का साधन कर जन्म कुण्डली या प्रश्न कुण्डली बनाकर फलादेश कहने की परिपाटी थी। ज्योतिषशास्त्र के सिद्धान्त ग्रन्थों में १२ अंगुल के शंकु की छाया से दिशा, अक्षांश, रेखांश स्पष्ट सूर्य, इष्टकाल एवं १. व्यये वैरिनिरो धातिव्ययादि परिचिन्तयेत् ।
तत्रैव श्लो० ५६
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