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( ७७ ) चन्द्रमा कार्य सिद्धि का बीज होने के कारण अपना विशेष महत्व रखता है। यदि किसी समय प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और कार्येश का स्थान सम्बन्ध तो हो किन्तु उन पर चन्द्रमा की दृष्टि न होकर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो प्रश्नकर्ता के मन में जिस कार्य का विचार है; उसकी सिद्धि न होकर किसी अन्य कार्य की सिद्धि होती है। उदाहरणार्थ, वृषभ लग्न में सन्तति सम्बन्धी प्रश्न पूछने के समय की यह कुण्डली है :
यहां लग्नेश शुक्र और कार्येश (पंचमेश ) बुध दोनों साथ-साथ लग्न में स्थित हैं। इन पर चन्द्रमा
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११ मं की दृष्टि न होकर गुरु की पंचम दृष्टि है। अत: इस स्थिति में कहना चाहिए कि प्रश्नकर्ता को 2 शीघ्र सन्तति लाभ नहीं होगा। किन्तु बुध धनेश भी है । अतः उसे अचानक किसी नई योजना के द्वारा धन लाभ अवश्य होगा।
राजयोगा अमी ख्याता श्चत्वारोऽपि महाबलाः।
अत्रैव दृष्टियोगेन सामान्येन फलं स्मृतम् ॥७६॥ अर्थात ये चारों अत्यन्त बलवान राजयोग प्रसिद्ध हैं। इन पर (अन्य ग्रहों की) दृष्टि और योग सामान्य रीति से फल कहा गया है।
भाष्य : ग्रन्थकार ने इन सुप्रसिद्ध एवं अत्यन्त बलवान राजयोगों का व्याख्यान किया है। किन्तु इन पर शुभ एवं पाप ग्रहों की दृष्टि और युति का फल विद्वानों को सामान्य रीति से स्वयं विचार कर लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि यदि लग्नेश
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