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( ८२ ) देखकर दिन गणना कर अवधि का निश्चय किया जाए तो यह दिन संख्या या अवधि अधिक सूक्ष्म रहेगी।
उदाहरणार्थ, पदोन्नति से सम्बन्धित प्रश्नकाल की निम्नलिखित कुण्डली देखिये :
इस कुण्डली में लग्नेश गुरु की लग्न पर और भाग्येश सूर्य की भाग्य पर दृष्टि है । कर्मेश बुध भी अपने स्थान को देख रहा है। किन्तु चन्द्रमा सातवें स्थान में मिथुन
राशि में स्थित है। इस ग्रह स्थिति में किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया कि मेरी पदोन्नति का मामला विचाराधीन है। इसका निर्णय कब तक आयेगा। उपर्युक्त ग्रह स्थिति और चन्द्रमा का ६ दिन बाद सिंह राशि में संचार देखकर उसे उत्तर दिया गया कि आपकी पदोन्नति अवश्य होगी
और इसका निर्णय आपको छः दिन बाद मिल जावेगा। वस्तुतः परिणाम पूर्णरूपेण सच निकला।
लग्नाधिपतिर्नुन्धो लाभाधीशश्च दायको भवति । लग्नाधिपस्य योगो लाभाधीशेन लाभकरः ॥८॥ भवति परं लाभकरस्तदैव यदि भवति चन्द्रदृग्लाभे।
योगाः सर्वेप्यफलाश्चन्द्रमृते व्यक्तमेवैतत् ॥८१॥ अर्थात् लग्नेश लेने वाला और लाभेश देने वाला होता है। लग्नेश का लाभेश के साथ योग लाभकारक होता है। परन्तु यह तभी लाभकारक होता है, जब चन्द्रमा की दृष्टि लाभ स्थान पर हो। (क्योंकि) समस्त योग चन्द्रमा की दृष्टि के बिना निष्फल होते हैं, यह स्पष्ट है।
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