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प्रपञ्च मेरे ( ग्रन्थकार) के मतानुसार है ।
भाष्य : ग्रन्थकार का कहना है कि राजयोग के कारक ग्रह लग्नेश और कार्येश परस्पर नैसर्गिक दृष्टि से शत्रु हों; किन्तु यदि वे चन्द्रमा से युक्त हों तो राजयोग की तुलना में आधा फल देते हैं । ग्रन्थकार की यह कल्पना भी पाराशर की कारकत्व की कल्पना से अधिकांशतया समानता रखती है । क्योंकि पाराशर ने नीच राशिगत, शत्रुराशिगत आदि दोषों से युक्त केन्द्रत्रिकोण के स्वामियों में सम्बन्ध मात्र होने से उन्हें राजयोग कारक माना है । ग्रन्थकार का यहां आधा फल मानने में सम्भवतः यह हेतु रहा होगा कि इस स्थिति में लग्नेश और कार्येश कुछ निर्बल हैं तथा उन पर चन्द्रमा की दृष्टि न होकर उनका चन्द्रमा के साथ योगमात्र है । अतः योग कारक ग्रहों के निर्बल तथा योग पूरा न बनने के कारण फल भी आधा मानना चाहिए, अस्तु ।
किन्तु इस विषय में हमारा मत यह है कि दो नैसर्गिक शत्रु ग्रहों के सम्बन्ध से बनने वाले इस योग के प्रभाववश व्यक्ति को अनेक प्रकार की रुकावटों और मतभेदों का सामना करना पड़ेगा तथा इन ग्रहों से चन्द्रमा के योग के कारण उसके मन में भी अस्थिरता रहेगी । अतः परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने पर ही उसे परिणाम में सफलता मिलेगी । उदाहरणार्थ, व्यवसायसम्बन्धी एक प्रश्न की कुण्डली देखिये यहां लग्नेश बुध और कार्येश ( दशमेश ) गुरु दोनों कार्यस्थान में चन्द्रमा के साथ हैं । ये दोनों नैसर्गिक शत्रु हैं । अतः नवीन व्यवसाय शुरू करने में अनेक
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