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सिद्धि होती है ।
यदि लग्नेश और कार्येश राजयोगोक्त रीति से परस्पर सम्बन्ध रखते हों, किन्तु इन पर चन्द्रमा की दृष्टि न हो तो राजयोग का शुभ फल मात्र १ पाद ( २५ प्रतिशत) मानना चाहिए प्रश्नकुण्डली में चन्द्रमा सिद्धि का बीज है । वह व्यक्ति के मनोयोग और मनोबल का भी परिचायक है । अतः जब योगकारक ग्रहों पर चन्द्रमा की दृष्टि होती है, तो व्यक्ति पूर्ण मनोयोग के साथ सुनिश्चित रीति से प्रयास करता हुआ सरलता से कार्य - सिद्ध कर लेता है । किन्तु चन्द्रमा की दृष्टि न होने पर उसका मनोयोग और मनोबल उतना नहीं रहता । फलतः उसे विरोध और विलम्ब आदि का सामना करना पड़ता है । और कार्य का परिणाम भी आंशिक रूप में उसे मिलता है । उदाहरणार्थ, मकान के प्रश्न से सम्बन्धित निम्नलिखित प्रश्नकुण्डली देखिये : यहां लग्नेश गुरु लग्न में तथा कार्येश ( चतुर्थेश ) बुध चतुर्थ स्थान में स्थित है । किन्तु इन दोनों पर चन्द्रमा की दृष्टि नहीं है अतः इस स्थिति में प्रश्नकर्ता से कहना चाहिए कि उसे भूमि एवं मकान निर्माण में अनेक कठिनाइयां आवेंगी किन्तु इनके बावजूद भी प्रयास करने पर मकान का कार्य पूर्ण होगा ।
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परस्परं विषमता चन्द्रयोगो
भवेदादि ।
तदाऽर्ध फलमादिष्टं प्रपञ्चोऽयं मतो मम ॥७८॥
अर्थात् (लग्नेश और कार्येश में ) परस्पर शत्रुता होने पर भी यदि वे चन्द्रमा से युक्त हों तो आधा फल कहा गया है । यह
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