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रुकावटें आयेंगी तथा दैनिक कार्यों में झगड़े रहेंगे। किन्तु इन
सबके
बावजूद भी लाभ होगा ।
१२. अथ लाभालाभादि द्वारम्
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लग्नेशो वीक्षते लग्नं कार्येशः कार्यमीक्षते । कार्यसिद्धिर्भवेदिन्दुः कार्यमेति परं यदा ॥७६॥
अर्थात् लग्नेश लग्न को और कार्येश कार्यभाव को देखता हो तो जब चन्द्रमा कार्यस्थान पर आता है तब कार्य की सिद्धि होती है ।
भाष्य : कार्यसिद्धि के योगों के विचार के प्रसंग में श्लोक ६० में यह बतलाया जा चुका है कि लग्नेश लग्न को और कार्येश कार्य स्थान को देखे तथा इनसे चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो कार्यसिद्धि होती है । यदि लग्नेश लग्न को और कार्येश कार्य स्थान को तो देखें, किन्तु चन्द्रमा का इनके साथ उस समय सम्बन्ध न हो, तो इस स्थिति में गोचरीय चार के क्रम से जब चन्द्रमा कार्य स्थान पर आता है तब कार्येश के साथ दृष्टि सम्बन्ध या स्थान सम्बन्ध हो जाता है । और तब कार्यसिद्धि का पूर्ण योग बनने के कारण कार्य सिद्धि हो जावेगी । इस का उपयोग यह है कि इस रीति से कार्य सिद्धि की अवधि का निश्चित ज्ञान कर सकते हैं ।
चन्द्रमा मध्यम मान से २ / 7 दिन में एक राशि और लगभग २७ दिन में राशि चक्र का एक चक्कर पूरा कर लेता है । अतः इस योग में अधिकतम कार्य की सिद्धि २७ दिन हो सकती है । इसलिए तात्कालिक प्रश्नों में इस रीति का प्रयोग करना चाहिए । चन्द्रमा के मध्यम मान से दिन गणना करने की अपेक्षा यदि पञ्चाग के माध्यम से सम्बन्धित राशि में चन्द्रमा का संचार
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