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( ७५ ) अनिवार्य शर्त के रूप में मानी गयी है। यदि चन्द्रमा मित्र राशि, मूल त्रिकोण राशि, उच्च राशि या स्व राशि में स्थित होकर बलवान हो तो योग के शुभ प्रभाव में वृद्धि करता है।
विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए उदाहरण के तौर पर निम्नलिखित कुण्डलियां दी जा रही हैं :
किसी ने सिंह लग्न में भाग्य सम्बन्धी प्रश्न किया। तात्कालिक ग्रह स्थिति के अनुसार कुण्डली इस प्रकार है :
प्रथम योग : इस कुण्डली में लग्नेश सूर्य कार्य भाव (भाग्य भाव) में उच्च राशि में स्थित है और कार्येश मंगल लग्न में सिंह राशि में बैठा है तथा लग्नेश सूर्य पर चन्द्रमा की पूर्ण दृष्टि भी है। अतः यहां प्रथम योग पूर्णरूपेण बनता है। फलतः भाग्य वृद्धि अवश्य होगी।
किसी अन्य व्यक्ति ने मीन लग्न में मकान से सम्बन्धित प्रश्न किया । उस समय की ग्रह स्थिति के आधार पर निम्नलिखित कुण्डली बनी :
द्वितीय योग : यहां लग्नेश गुरु लग्न में तथा कार्येश बुध कार्यभाव (चतुर्थ) में स्थित है। बुध पर चन्द्रमा की पूर्णदृष्टि भी है। इसलिए यहां द्वितीय योग पूरा-पूरा घट रहा है । परिणामत:
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cम.
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