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देखता हो (अथवा) लग्नेश कार्येश को और कार्येश लग्नेश को देखता हो तथा इन पर चन्द्रमा की दृष्टि हो, तो कार्य की पूर्ण सिद्धि होती है।
भाष्य : श्लोक ५६ में लग्न एवं कार्यभाव का महत्त्व बतलाया जा चुका है और श्लोक ५६ में लग्नेश एवं कार्येश की युति दष्टि आदि सम्बन्धों का विचार किया गया है। यहां लग्नेश एवं कार्येश के सम्बन्ध से पूर्णसिद्धि के तीन योग कहे गये हैं, जो इस प्रकार हैं: (i) लग्नेश की लग्न पर और कार्येश की कार्यभाव पर
दृष्टि तथा इन पर चन्द्रमा की दृष्टि । (ii) लग्नेश की कार्यभाव पर और कार्येश की लग्न पर
दृष्टि तथा इन पर चन्द्रमा की दृष्टि । (iii) लग्नेश एवं कार्येश की परस्पर दृष्टि तथा इन पर
चन्द्रमा की दृष्टि। यदि प्रश्नकुण्डली में उक्त तीनों योगों में से एक भी योग बनता हो तो प्रश्नकर्ता के कार्य की पूर्ण सिद्धि बतलानी चाहिए।
उदाहरणार्थ-किसी प्रश्नकर्ता ने सन्तति सम्बन्धी प्रश्न किया। प्रश्नकाल में वृश्चिक लग्न और तात्कालिक ग्रहस्थिति के आधार पर प्रश्नकुण्डली बनायी गई जो इस प्रकार है
इस कुण्डली में लग्नेश मंगल की लग्न पर और पंचमेश गुरु कार्यभाव (पंचम) पर पूर्ण दृष्टि है। तथा सप्तम स्थान में स्थित चन्द्रमा की गुरु पर दृष्टि है। इस प्रकार यहाँ उक्त योगों में से प्रथम
वा
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