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मत यह है कि यदि लग्न पर केवल शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो कार्यसिद्धि (फल) की मात्रा १ पाद या २५ प्रतिशत माननी चाहिए। शुभ ग्रह की अपेक्षा लग्नेश की लग्न पर दृष्टि (सामान्यतया भावेश की भाव पर दृष्टि)अधिक महत्वपूर्ण है। यद्यपि शुभ ग्रह और भावेश दोनों ही फल की वृद्धि करते हैं किन्तु शुभ ग्रह की अपेक्षा भावेश फल को अधिक पुष्ट करता है। अतः लग्नेश की लग्न पर दृष्टि मात्र से कार्यसिद्धि (फल) की मात्रा २ पाद या ५० प्रतिशत हो जाती है। वस्तुतः दृष्टि के माध्यम से फल में तारतम्य प्रस्तुत करने का ग्रन्थकार का यह सर्वथा नवीन एवं मौलिक प्रयास है। पूर्ववर्ती आचार्य शुभ ग्रह एवं भावेश की दृष्टि के प्रभाव से परिचित अवश्य थे, किन्तु वे उसे इतने स्पष्ट रूप में नहीं कह सके, जितना स्पष्ट एवं निःशंक होकर आचार्य पद्मप्रभु सूरि ने कहा है। - 'यदि लग्न पर लग्नेश और एक शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो कार्य सिद्धि की मात्रा पादोन (३/४) या ७५ प्रतिशत माननी चाहिए।' ग्रन्थकार का यह कथन युक्ति संगत है। क्योंकि लग्न का एक शुभ ग्रह की दृष्टि से फल की मात्रा १ पाद (१/४) और लग्नेश की दृष्टि से फल की मात्रा २ पाद (१/२) मानी गयी है। इन दोनों का योग पादोन (३/४) या ७५ प्रतिशत सिद्ध होता है।
यदि लग्न पर लग्नेश और २ या ३ शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो फल त्रिभागोन माना गया है। प्राचीन काल में एक भाग का तात्पर्य एक विंशोपक माना जाता था। अतः त्रिभागोन का अर्थ १७ विंशोपक (१७/२०) या ८५ प्रतिशत सिद्ध होता है । इस प्रकार शुभ ग्रहों की संख्या में वृद्धि से फल की
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