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( ६५ ) एकः शुभग्नहो यदि पश्यति लग्नाधिपो विलोकयति। पादोन योगमाहुस्तदा बुधाः कार्यसिद्धये ॥६४॥ लग्नपति दर्शने सति शुभ ग्रहो द्वौ त्रयोऽथवा लग्नम्। पश्यन्ति यदि तदानीमाहुर्योगं विभागोनम् ॥६॥ क्रूरावक्षणवर्जाश्चत्वारः सौम्यखेचराः लग्नम् ।
लग्नेशदर्शने सति पश्यन्ति पूर्णयोगकराः॥६६॥ अर्थात् शुभ ग्रह लग्न को देखे किन्तु लग्नेश लग्न को न देखें तो पाद (१/४) योग कहते हैं। और लग्नेश लग्न को देखे परन्तु शुभ ग्रह न देखे तो अर्ध (१/२) योग होता है। यदि एक शुभ ग्रह और लग्नेश लग्न को देखें तो कार्यसिद्धि के लिए पादोन (३/४) योग विद्वानों ने कहा है। लग्नेश की लग्न पर दृष्टि होने के साथ दो या तीन शुभ ग्रह लग्न को देखते हों तो त्रिभागोन (१६/२०) योग कहा जाता है और पाप ग्रहों की दृष्टि को छोड़कर चारों शुभ ग्रह लग्न को देखते हों, तथा लग्नेश की लग्न पर दृष्टि हो, तो पूर्ण योग होता है।
भाष्य : ग्रन्थकार ने श्लोक ४२ में चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र को शुभ ग्रह तथा सूर्य, मंगल, शनि और राहु को पाप ग्रह माना है । यद्यपि चन्द्रमा और बुध को सदैव शुभ ग्रह मानना अन्य आचार्यों को अभिप्रेत नहीं है, जैसा कि हमने उक्त श्लोक के भाष्य में स्पष्ट किया है। तथापि ग्रह दृष्टि से योगफल के न्यूनाधिकत्व-निर्णय के इस प्रसंग में ग्रन्थकार का मत स्पष्ट रूप से पाठकों के सम्मुख रखने के लिए उन्हीं के मतानुसार व्याख्या कर रहे हैं।
यहां लग्नेश एवं शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि के अनुसार ‘फल में न्यूनाधिकता की कल्पना की गई है। ग्रन्थकार का अपना
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