________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ६६ ) से देखता हो, उसे क्रूर दृष्ट कहते हैं । सूर्य की राशि में प्रवेश करने की इच्छा वाला या प्रविष्ट हुआ ग्रह विरश्मि कहा जाता है।
भाष्य : यहां 'विनष्ट' ग्रह का लक्षण निरुपित किया गया है। कोई भी ग्रह जब क्रूराक्रान्त, क्रूरयुत क्रूरदृष्ट या विरश्मि हो उसे विनष्ट कहते हैं । तात्पर्य यह कि इन चार स्थितियों में से किसी भी स्थिति को प्राप्त कर ग्रह विनष्ट कहलाता है। ग्रन्थकार ने क्रूराकान्त आदि स्थितियों की परिभाषा स्वयं दी
जब कोई ग्रह ग्रहयुद्ध में क्रूरग्रह से पराजित हो जाता है, तो उसे क्रूराक्रान्त कहते हैं। ग्रहयुद्ध से तात्पर्य दो या अधिक में अत्यन्त निकटता होना है। इन ग्रहों में से जो ग्रह उत्तर की ओर हो तथा अन्य ग्रहों की अपेक्षा प्रखररश्मि वाला हो वह विजयी कहा जाता है और अन्य पराजित । अतः जो ग्रह पाप ग्रह के अत्यन्त निकट हो, उसकी रश्मियों की तुलना में मन्द रश्मिवाला हो तथा पाप ग्रह से दक्षिण की ओर स्थित हो उसे क्रूराक्रान्त जानना चाहिए। राहु और केतु जिस प्रकार ग्रहण की स्थिति में सूर्य और चन्द्रमा के तेज को क्षीण कर देता है उसी प्रकार अन्य ग्रहों से युक्त होकर भी वह उन्हें निस्तेज बना देता है । अतः इन दोनों से युक्त ग्रह भी क्रूराक्रान्त कहा जाता है। अन्य आचार्यों ने क्रूराक्रान्त ग्रह को पीड़ित, निपीड़ित या अतिपीड़ित भी कहा है।
क्रूरयुक्त ग्रह केवल क्रूरग्रह के योग मात्र से नहीं होता। अपितु वह क्रूरग्रह के साथ एक ही नवांश में भी होना चाहिए। नवांश राशि के नौवें भाग को कहते हैं। अतः ३ अंश २०
For Private and Personal Use Only