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“क्रूरावेक्षणवर्जा:' इस शर्त द्वारा पूर्णयोग की स्थिति में पाप ग्रहों की दृष्टि का निषेध किया है । अत: इस परिस्थिति में तो पूर्ण फल के स्थान पर फल में ह्रास ही दिखाई देता है । यदि यह कहा जाए कि जब परिस्थितिवश बुध और चन्द्रमा भी शुभ हों, तब लग्न पर लग्नेश और इन चारों की दृष्टि होने पर ही पूर्ण योग एवं फल घटता है तो संयोग वश कदाचित होने वाली यह घटना दुर्लभ स्थिति बन जावेगी और दैनन्दिन स्थिति में पूर्ण योग या फल की कल्पना असंभव सी हो जावेगी इसलिए हम पूर्ण योग या फल के साथ चार शुभ ग्रहों की दृष्टि वाली अनिवार्य शर्त से सहमत नहीं हैं । मेरी राय में लग्न पर लग्नेश और किन्हीं - किन्हीं शुभ ग्रहों की दृष्टि मात्र से पूर्ण योग एवं फल मानना अधिक तर्क संगत और व्यावहारिक है ।
१०. अथ विनष्टग्रह विचार द्वारम्
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क्रूराक्रान्तः क्रूरयुतः क्रूरदृष्टस्तु यो ग्रहः । विरश्मितां प्रपन्नश्च स विनष्टो बुधैः स्मृतः ॥६८॥ क्रूरेण जीयमानो यो राहुपाश्र्व यथा रविः । क्रूराक्रान्तः स विज्ञेयः क्रूरयुक्तः साऽशके ॥ ६८ ॥ पूर्णया दृश्यते दृष्ट्या क्रूरदृष्टः स उच्यते । प्रविविक्षुः प्रविष्टो वा सूर्यराशौ विरश्मिकः ॥ ६६ ॥
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अर्थात जो ग्रह क्रूराक्रान्त, क्रूरयुत, क्रूरदृष्ट एवं रश्मियों से रहित हो उसे विद्वान विनष्ट संज्ञक कहते है । जो ग्रह क्रूर ग्रह से पराजित हो, जैसे राह के साथ ( ग्रहण में ) रवि, उसे क्रूराक्रान्त कहते हैं । क्रूर के युक्त ग्रह यदि एक ही नवमांश में हो तो वह क्रूर युक्त कहलाता है । जिस ग्रह को क्रूर ग्रह पूर्ण दृष्टि
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