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सदैव रहता है । कारकत्व की दृष्टि से शनि भृत्य ग्रह है। भृत्य का कर्तव्य उद्योग, पराक्रम एवं प्रयत्न करना तथा स्वामी और उसकी आज्ञा का ध्यान रखना प्रमुख है । अतः इनके प्रतिनिधि तृतीय और दशम भाव को शनि देखता है। वृहस्पति को गुरु कहा गया है। गुरु का प्रधान कर्तव्य शिष्य को विद्वान् एवं धार्मिक बनाना है । इसलिए विद्या और धर्म के प्रतिनिधि भाव पञ्चम और नवम को वृहस्पति देखता है। इसी प्रकार मंगल को सेनापति कहा गया है। सेनापति का मुख्य कर्तव्य है देश की बाह्य एवं आन्तरिक संकटों से रक्षा करते हुए सुख, शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना। फलतः इनके प्रतिनिधि भावों चतुर्थ और अष्टम पर उसकी दृष्टि रहती है। शेष ग्रह सूर्य और चन्द्रमा राजा हैं, बुध युवराज एवं शुक्र मन्त्री है। इनका विशेष दायित्व न होने के कारण ये स्वाभाविक रूप से सप्तम स्थान को देखते हैं।
॥ ग्रहाणां दृष्टिचक्रम् ॥
शु.
श.
रा.
ग्रह
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दृष्टि स्थान
कथयन्ति पादयोगं पश्यति सौम्यो न लग्नपो लग्नम्। लग्नाधिपश्च पश्यति शुभ ग्रहो नार्धयोगञ्च ॥६३॥
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