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मित्रराशि अपने नवमांश या द्रेष्काण में होता है
वह स्थान बली होता है। दिग्बल : बुध और गुरु लग्न में, चन्द्रमा और शुक्र चतुर्थ में,
शनि सप्तम में तथा सूर्य और मंगल दशम में
दिग्बली होते हैं। कालबल : चन्द्रमा, शुक्र और शनि रात्रि में सूर्य मंगल और
गुरु दिन में तथा बुध सदैव कालबली होता है। चेष्टाबल : सूर्य और चन्द्रमा उत्तरायण में और शेष ग्रह चन्द्रमा
के साथ रहने पर चेष्टाबली होते हैं। कुछ आचार्य ग्रहयुद्ध में विजयी, वक्री और जाज्वल्यमान रश्मि
वाले ग्रह को भी चेष्टाबली मानते हैं। नैसर्गिकबल : शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य
उत्तरोत्तर नैसर्गिक रूप से बलबान होते हैं। कुछ आचार्यों ने इन पाँच बलों के अतिरिक्त 'दृग्बल' का भी विचार किया है । यह बल दृष्टि से सम्बन्ध रखता है इसके अनुसार शुभ ग्रहों से दृष्टग्रह बलवान होता है । इस प्रकार कुल मिलाकर बल छह प्रकार के होते हैं । इन बलों से रहित ग्रह को बलहीन कहते हैं।
जो ग्रह उच्च राशि, मित्र राशि, मूल त्रिकोण राशि में बलशाली हो, अस्तंगत न हो, ग्रहयुद्ध में विजयी हो, शुभ ग्रह और अपने मित्रों से युक्त हो तथा दुःस्थान में स्थित न हो वह अपना फल देने में समर्थ होता है।
उक्त रीति से लग्नेश का गम्भीरतापूर्वक मनन करने के उपरान्त उस भाव का भी विचार करना चाहिए, जिसमें लग्नेश स्थित हो। क्योंकि भावेश ग्रह त्रिस्थान (६, ८ एवं १२वें
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