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( ५२ ) भाष्य : यह भाव राज्य, राजगद्दी, राजनैतिक सत्ता एवं प्रभाव, राजमुद्रा, राजधानी, नगर, व्यवसाय, सामाजिक हैसियत, पैतृक दायित्व, वर्षा एवं अंतरिक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। इस भाव से प्रभाव, प्रतिष्ठा, कीर्ति, सम्मानित उपाधि, विदेश यात्रा (विशेष कर वायुयान से यात्रा) एवं लोकापवाद का भी विचार करते हैं।'
गजाश्वयानवस्त्राणि सस्यकाअचनकन्यकाः ।
विद्वान् विद्यार्थयोर्लाभं लक्षयेल्लाभलग्नतः ॥५३॥ अर्थात् हाथी, घोड़ा, वाहन, वस्त्र, धान्य, स्वर्ण, कन्या, विद्या और अर्थ का लाभ इन सबको विद्वान् एकादश भाव से देखें।
भाष्य : एकादश स्थान हाथी, घोड़ा, मोटर आदि यान, वस्त्र-आभूषण, धन-धान्य, लौकिक विद्या और अर्थ के लाभ का प्रतिनिधि भाव है। इससे पाण्डित्य, वाद-विवाद, तर्क एवं छोटे भाई का भी विचार होता है।
त्याग भोगविवाहेषु दानेष्टकृषिकर्मणि।
व्यय स्थानेषु सर्वेषु विद्धि विद्वन्व्ययं व्ययात् ॥५४॥ अर्थात् दान, भोगोपभोग, विवाह, इच्छित कार्य, खेती और अन्यान्य कार्यों पर व्यय का विचार द्वादश भाव से जानिये। १. व्योम्नि मुद्रां परं पुण्यं राज्यवृद्धिञ्च पैतृकम् ।
तत्रैव श्लो० ५४ २. आये सर्वार्थधान्यार्ध कन्यामिनचतुष्पदाः। - राज्ञो वित्तं परीवारो लाभोपायाञ्च भूरिशः ॥
तत्रैव श्लो०५५
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