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( ५४ ) क्रान्ति आदि साधन के लिए विभिन्न नियमों का सहैतुक विवेचन मिलता है। इस विषय का विस्तार से निरूपण करने के लिए प्रायः सभी सिद्धान्त ग्रन्थों में त्रिप्रश्नाधिकार' नाम से एक पृथक् अध्याय जोड़ा गया है । आज के युग में सूर्योदय एवं जन्मकाल या प्रश्नकाल के अन्तर के द्वारा इष्टकाल का साधन सुगमतापूर्वक दिया जाता है । आचार्य द्वारा कहा गया उक्त प्रकार आज ऐतिहासिक महत्व का विषय मात्र है। यह इष्टकाल के साधन को प्राचीन परम्परा और उसके क्रमिक विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
इष्ट काल जन्मकुण्डली या प्रश्न कुण्डलो को बनाने का मूलभूत आधार है। फलादेश के लिए समस्त गणना इसी के आधार पर चलती है । सूर्योदय से लेकर जन्म समय या प्रश्न समय तक बीते हुये काल को इष्टकाल कहते हैं । अतः सूर्योदय से लेकर प्रश्न समय तक जितना घण्टा मिनिटात्मक काल हो, उसे ढाई गुना कर देने पर इष्ट घटी पल बनता है। इसके लग्नादि का साधन कर प्रश्न कुण्डली बनायी जाती है। ६. अथ लग्न विचारद्वारम्
इन्दुः सर्वत्र बीजाभो लग्नं तु कुसुमप्रभम् ।
फलेन सदृशोऽशश्च भावः स्वादुसमः स्मृत ॥५६॥ अर्थात् चन्द्रमा सर्वत्र बीज के समान है, तो लग्न पुष्प के समान है, नवांश फल समान है और भाव (उसके) स्वाद के समान है।
आचार्य ने यहाँ भाव सम्बन्धी फलादेश के चार महत्त्वपूर्ण उपकरण बतलाये हैं : १. चन्द्रमा, २. लग्न, ३. नवांश, और ४.
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