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( २७ ) आँगन या चौरस स्थान में) होता है। और इसी प्रकार शनि अथवा राहु का प्रभाव होने पर वह वस्तु भूमि में गड़ी होती है।
प्रश्नकालीन लग्न पर ग्रहों के प्रभाव द्वारा अथवा प्रश्नकाल में बलवान् ग्रह के द्वारा भी उक्त निर्णय किया जा सकता है।
पित्तं प्रभाकरक्ष्माजौ श्लेष्मा भार्गवशीतगू।
ज्ञगुरु समधातू च पवनौ राहुमन्दगौ ॥२६॥ अर्थात् सूर्य और मंगल पित्तप्रकृति, शुक्र और चन्द्र श्लेष्मा (कफ) प्रकृति, बुध और गुरु सम (वात, पित एवं कफ के समानता) प्रकृति तथा शनि और राहु वायु प्रकृति ग्रह हैं। . आयुर्वेदशास्त्र में वात, पित्त एवं कफ इन तीन धातुओं के प्रकोप से रोगोत्पत्ति का सिद्धान्त माना गया है। शरीर में उत्पन्न होने वाले समस्त विकारों का हेतु इन्हीं धातुओं का प्रकोप है। अतः ग्रहों के प्रभाव से रोग निदान करने के लिए ग्रहों की इस प्रकृति का ज्ञान आवश्यक है।
रोग से सम्बन्धित प्रश्न में प्रश्नकाल में जो रोगकारक ग्रह हो, उसकी धातु के प्रकोप से रोग की उत्पत्ति होती है। यदि रोगकारक ग्रह एकाधिक हों, अथवा वह अनेक ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो, तो उन सबमें बलवान ग्रह की धातु के कोप से रोगोत्पत्ति माननी चाहिए तथा ग्रहों के बलाबल के द्वारा रोग के साध्यात्व का निर्णय करना चाहिए । उदाहरणार्थ-यदि प्रश्नकुण्डली में सूर्य या मंगल रोगकारक ग्रह हों तो पित्त धातु के प्रकोप से उत्पन्न होने वाले रोग-जैसे ज्वर, अतिसार, उदरविकार एवं अन्य पित्त विकार कहने चाहिए। यदि प्रश्नकुण्डली में शुक्र अथवा चन्द्रमा रोगकारक हों तो कब्ज रोग—जैसे सर्दी
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