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( ३२ ) इस प्रकार करते हैं यदि उक्त ग्रह जलचर-राशि के नवमांश में हों, तो जलज और यदि स्थलचर-राशि' के नवमांश में हों, तो स्थलज मूल कहना चाहिए। बुध और गुरु जीवसंज्ञक हैं। यदि प्रश्नकाल में इन दोनों में से किसी एक का लग्न से सम्बन्ध हो, तो प्रश्न जीव से सम्बन्धित होता है । अग्रिम श्लोक में जीव के पूर्वोक्त तीन प्रकारों—१. द्विपद, २. चतुस्पद एवं ३. सरीसृप का विचार किया जा रहा है।
द्विपदौ भार्गवगुरु भौमाकौ च चतुस्पदौ ।
पक्षिणी बुधसौरी च चन्द्रराहू सरीसृपौ ॥२६॥ अर्थात शुक्र एवं गुरु द्विपद संज्ञक हैं; मंगल और सूर्य चतुष्पद संज्ञक हैं; बुध एवं शनि पक्षी संज्ञक है तथा चन्द्रमा एवं राहु सरीसृप (रेंगने वाले) संज्ञक हैं।
भाष्य : जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं-१. द्विपद, २. चतुस्पद एवं ३. सरीसृप । द्विपद का अर्थ है, दो पैर वाले । इस वर्ग के अन्तर्गत मनुष्य, राक्षस, यक्ष, गन्धर्व, सिद्ध, विद्याधर, किन्नर एवं देवता आदि सम्मिलित हैं। चतुष्पद का अर्थ है चार पैर वाले । इस वर्ग में गाय, बैल, अश्व, हाथी, भेड़, बकरी, सिंह ऊंट, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, गिलहरी आदि अनेक पशु शामिल हैं। सरीसृप वे जीव हैं, जो रेंगकर चलते हैं। सर्प, बिच्छु, छिपकली, काँतर आदि विभिन्न कीट इस वर्ग में आते हैं। __ पूर्वोक्त रीति से प्रश्न जीव से सम्बन्धित है, यह निश्चय हो जाने पर, जीव द्विपद, चतुष्पद या सरीसृप है यह विचार यहाँ १. जलचर राशियाँ : कर्क, वृश्चिक, मकर, कुम्भ और मीन। २. स्थलचर राशियाँ : मेष, वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, तुला और धनु ।
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