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( ४६ ) के द्रव्य का भी विचार किया जाता है।'
गर्भापत्यविनयानां मन्त्रसाधनयोरपि ।
विद्याबुद्धिप्रबन्धानां सुतस्थानाद्विनिश्चयः॥४७॥ अर्थात् गर्भ, सन्तान, शिष्य, मन्त्रसाधन, विद्या, बुद्धि और ग्रन्थ रचना का पंचम स्थान से निश्चय करें।
भाष्य : पञ्चम भाव से गर्भस्थिति, गर्भस्राव, पुत्र-कन्या सन्तति, साम्प्रदायिक शिष्य और अनुयायी, आध्यात्मविद्या एवं भौतिकशास्त्र, बुद्धि और साहित्य सृजन की क्षमता का विचार किया जाता है। साथ ही मन्त्र, तन्त्र और यन्त्र की सिद्धि तथा आकस्मिक लाभ का भी विचार करते हैं । २ ।
सौरिभारिपुसंग्राम गवोष्ट्रक रकर्मणाम् ।
मातुलातङ्कशङ्कानां रिपुस्थानाद्विनिर्णयः ॥४८॥ अर्थात् भैंस, शत्रुओं से युद्ध, गाय, ऊँट, क्रूरकर्म, मातुल, भय एवं शंका का निर्णय छठे भाव से करें।।
भाष्य : षष्ठ भाव स्थान से विचारणीय विषयों में प्रमुख हैं—भैंस, शत्रुओं से लड़ाई, मुकदमेबाजी, गाय, ऊँट, मारण मोहन उच्चाटन, स्तम्भन आदि अभिचार क्रिया, हिंसा आदि क्रूरकर्म, मामा भय और आशंका आदि । साथ ही इस भाव से रोग, विरोध, चोर, विवाद, अग्नि काण्ड, दुर्घटना, चोट और
१. पितृवित्तं निधिक्षेत्रं गृहं भूमिश्च तुर्यतः ।
तत्रैव श्लो०५१
२. पुढे मन्त्र धनोपायगर्भविद्यात्मजेक्षणम् ।
तत्रैव श्लो०५१
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