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( ४७ ) इन भावों से विचारणीय विषयों की चर्चा कर लेना सर्वथा प्रासंगिक है। आचार्य ने लग्न से इन विषयों का विचार करने का उल्लेख किया है। व्यक्ति का स्वरूप, (कद छोटा है या बड़ा तथा शरीर पुष्ट है या कृश आदि) लक्षण (तिल, मशक एवं लहसुन आदि चिन्ह) वर्ण (गौर, श्याम आदि रंग), क्लेश (दुःख कष्टादि) दोष (स्वभावगत अवगुण), सुख (स्त्री धन पुत्र शरीर आदि का) आयु, वयप्रमाण (बाल, युवा एवं वृद्ध अवस्था) एवं जाति (ब्राह्मण क्षत्रिय आदि) इन सबका विचार, लग्न से करना चाहिये। इसके अलावा व्यक्ति का शील, स्वभाव, यश, स्वास्थ्य जीवन में उत्थान-पतन एवं विशेष प्रगति का भी लग्न से विचार किया जाता है । आचार्य नीलकण्ठ दैवज्ञ का भी यही मत है।
मणिमुक्ताफलं स्वर्ण रत्नधातुकदम्बकम् ।
क्रयाणकार्वज्ञानानि धनस्थानान्निरीक्षयेत् ॥४४॥ अर्थात् मणि, मोती, सोना, रत्न, धातुसमूह और किराने की वस्तुओं की तेजी-मन्दी का विचार धन भाव से करना चाहिए।
भाष्य : दूसरे भाव से जिन वस्तुओं का विचार किया जाता है, उनकी सूची इस प्रकार है-पन्ना, पुखराज, नीलम, मानिक्य एवं वैदूर्य आदि मणि, मोती, हीरा आदि बहुमूल्य रत्न, सुवर्ण, चाँदी, पीतल, जस्ता, ताँवा, लोहा एवं काँसा आदि धातुयें तथा किराने की वस्तुओं (दैनिक उपभोग का सामान) की तेजी-मन्दी का विचार इस भाव से किया जाता है। इसके अतिरिक्त ऐश्वर्य, कुटुम्ब, वस्त्र, मुख, अश्व आदि वाहन, मार्ग सम्बन्धी कार्य और कोष आदि का भी विचार इस
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