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( ४८ )
भाव से करते हैं।
भगिनीभ्रातृभृत्यानां दासकर्मकृतामपि ।
कुर्वीत वीक्षणं विद्वान्सम्यग् दुश्चिकयवेश्मनि ॥४५॥ अर्थात् बहिन, भाई, नौकर एवं सेवक आदि का विचार विद्वान् तीसरे भाव से करें। ___ भाष्य : तीसरे भाव से विचारणीय विषय हैं–बहिन, भाई, नौकर एवं दास-दासी आदि घरेलू सेवक जन । इस भाव से पराक्रम शौर्य, साहस, भोजन, समुद्रयात्रा, व्यापारादि उद्यम और विवाद में हार-जीत का भी विचार करते हैं।'
वाटिकाखलकक्षेत्रमहौषधिनिधीनिह ।
विवरादिप्रवेशं च पश्यत्पातालतो बुधः ॥४६॥ अर्थात् वाटिका, खलिहान, औषधि, निधि, खेत एवं कन्दरा (गुफा सुरंग) आदि में प्रवेश इनका निरीक्षण विद्वान् चौथे भाव से करें।
भाष्य : चतुर्थ भाव से वाटिका, खलिहान, पेटेन्ट दवाइयाँ, खेत, भूमि, जायदाद, जमीन में गढ़ा हुआ धन और कन्दरा सुरंग आदि में प्रवेश का विचार किया जाता है । इसके अलावा बाग, उद्यान, सरोवर, गृहप्रवेश, मित्र, माता, वाहन एवं पिता
१. मुक्ताफलं च माणिक्यं रत्नधातुधनाम्बरम् । हयकार्याध्वविज्ञानं वित्तस्थानाद्विलोकयेत् ॥
ता० नीलकण्ठी-प्रश्नतन्त्र श्लोक-३४ २. विक्रमे भ्रातृमृत्या ध्वपित्य स्खलन साहसम् ।।
ताजि० नील० संज्ञातन्त्र-५०
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