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तो लोहा और राहु हो तो अस्थि (हड्डी) आदि बतलाना चाहिए। धातु के निर्णय हो जाने पर इस प्रकार से विशेष रूप से ( धातु ज्ञान ) कहा गया है ।
भाष्य : पहले श्लोक २८ में जिस रीति से धातु, मूल एवं जीव का निश्चय किया गया है उस रीति से प्रश्न धातु संबंधी है यह निर्णय कर लेने के बाद इस प्रकार विशेष धातु का ज्ञान करना चाहिए ।
धातु सम्बन्धी प्रश्न में योग कारक ग्रह से सूर्यादि ग्रहों का सम्बन्ध होने से विशेष धातु का ज्ञान इस प्रकार किया जाता है - यदि बलवान शुक्र या चन्द्रमा का सम्बन्ध हो, तो पृच्छक . के मन में चाँदी या रुपया आदि की चिन्ता कहनी जाहिए । इसी तरह यदि योग कारक ग्रह से बुध सम्बन्धित हो स्वर्ण की, गुरु हो तो रत्नजटित आभूषण की, सूर्य हो तो मोती की ( मतान्तर से मोती लगा आभूषण), मंगल हो तो सीसा की ( मतान्तर से तांबा या लाल रत्न, मूंगा आदि), शनि हो तो लोहा की और राहु हो तो हाथी दाँत या अस्थियों से बने पदार्थ की चिन्ता प्रश्न कर्ता के मन में होती है । प्रश्नशास्त्र के अन्य आचार्यों का भी प्रायः यही मत है ।
शुक्रे
चन्द्र जलाधारो देवतावसतिर्गुरौ । रवौ चतुष्पदस्थान मिष्टकानिचयो बुधे ॥ ३८ ॥ दग्धस्थानं कुजे प्रोक्तं शनौ राहौ च बाह्यभूः । अमभिहिबुकस्थाने नष्ट भूमि विलोकयेत् ॥ ३६ ॥ अर्थात् शु और चन्द्रमा हो तो जलाशय के पास, गुरु हो तो देवालय के, सूर्य हो तो पशु गृह, बुध हो तो ईंटों से बने
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