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( ४४ ) भौममन्दार्क भोगीन्द्राः प्रकृत्या दुःखदा नृणाम् । ज्ञगुरुश्वेत किरण शुक्राः सुखकराः सदा ॥४२॥
अर्थात् मंगल, शनि, सूर्य, और राहु स्वभावतः मनुष्यों को दुःख देने वाले हैं। बुध, गुरु शुक्र, और चन्द्रमा सदैव सुख देनेवाले हैं।
भाष्य : सूर्य, मंगल, शनि और राहु ये चार पापग्रह तथा बुध, गुरु, शुक्र और चन्द्रमा शुभ माने गये हैं। किन्तु कुछ आचार्य चन्द्रमा को सदैव शुभ ग्रह नहीं मानते ! उनके मतानुसार क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह होता है। बुध के बारे में भी मतभेद दिखाई देता है । बराह मिहिर, कल्याणवर्मा, जीवनाथ एवं भट्टोत्पल आदि विद्वानों ने शुभ ग्रह से युक्त बुध को शुभ तथा पाप ग्रह से युक्त बुध को पापी माना है।
चन्द्रमा के शुभाशुभत्व का निर्णय उसकी कलाओं में ह्रास एवं वृद्धि के अनुसार किया जाता है तथा उसी के आधार पर बल का निर्णय भी। फलदीपिका में आचार्य मन्त्रेश्वर ने कहा है कि शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि तक चन्द्रमा मध्यमबली, शुक्ल पक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक पूर्णबली तथा कृष्णपक्ष की षष्ठी से अमावस्या तक वह हीन बली होता है।' पूर्णबली चन्द्रमा शुभ ग्रह और हीन बली या क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह माना गया है।
१. शुक्लादिरात्रिदशकेऽहनि मध्यवीर्य ।
शाली द्वितीयदशकेऽति शुभप्रदोऽसौ। चन्द्र स्तृतीयदशके बलवजितस्तु,
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