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आचार्य नीलकण्ठ का भी यही मत है । "
प्रश्नकुण्डली में जो ग्रह बलवान् होकर लग्न से सम्बन्ध रखता हो, व्यक्ति की खानपान में उस ग्रह के रस में स्थायी अभिरुचि होती है तथा चन्द्रमा से सम्बन्ध रखने वाले ग्रह के रस में तात्कालिक इच्छा होती है । उदाहरणार्थ - प्रश्नकाल में बलवान् गुरु लग्न में स्थित है तथा चन्द्रमा बलवान शुक्र से दृष्टि है । इस स्थिति में व्यक्ति स्वभाव से मधुर पदार्थ मिष्ठान आदि) का प्रेमी है किन्तु उसकी तात्कालिक इच्छा कुछ खट्ट पदार्थों के खाने की है - ऐसा कहना चाहिए ।
मन्देन्दू रगभौमाः स्युर्धातु सवितृ भार्गवौ ।
मूलं जीवश्च सौम्यश्च जीवं प्राहुर्महाधियः ॥ २८ ॥ अर्थात् शनि, चन्द्रमा, राहु एवं मंगल धातु संज्ञक हैं । सूर्य शुक्र मूल संज्ञक है तथा बुध और गुरु जीव संज्ञक हैं ऐसा मनीषी आचार्यों ने कहा है ।
और
भाष्य : अपहृत वस्तु, नष्ट वस्तु, मुष्टिका, (मुट्टी) में रखी वस्तु या मूक प्रश्न में जिस वस्तु की चिन्ता है, उस वस्तु की जानकारी के लिए आचार्यों ने सर्वप्रथम धातु, मूल एवं जीव इन तीन वर्गों में समस्त वस्तुओं का वर्गीकरण किया है ।
धातु वर्ग में भूगर्भ से निकलने वाले समस्त पदार्थ, जैसे सोना, चाँदी, पीतल, ताँबा, काँसा सीसा, कोयला, पत्थर मिट्टी एवं अन्य खनिज पदार्थ आते हैं । धातु भी दो प्रकार की होती
१. कटुको लवणस्तिक्तो मिश्रितो मधुरो रसः ।
अम्लः कषाय कथिता ख्यादीनां रसाः बुधैः ॥
ताजिक नीलकण्ठी प्रश्नतन्त्र श्लोक २६
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