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( २८ ) जुकाम, खाँसी, दमा, निमोनिया आदि रोग होते हैं। बुध और गुरु के रोगकारक ग्रह होने पर त्रिदोषजन्य रोग होते हैं तथा राहु और शनि के रोगकारक होने पर गैस, गठिया लकवा एवं जोड़ों में दर्द जैसे वायु रोग होते हैं।
इस प्रकार रोग का निर्णय कर रोगकारक ग्रह के अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के लिए मन्त्र, औषधि, दान एवं स्नान आदि उपायों से ग्रह की शान्ति होने पर रोग दूर हो जाता है ।
कुजाको कटुको जीवो मधुर स्तुवरो बुधः।
क्षाराम्लो चन्द्रभृगजौ तीक्ष्णौ सर्किनन्दनौ ॥२७॥ अर्थात् मंगल और सूर्य कड़वे रस के, गुरु मधुर रस का, बुध कषाय रस का, चन्द्रमा नमकीन का, शुक्र खट्ट रस का, शनि और राहु तीक्ष्ण रस के प्रेमी या प्रतिनिधि हैं। __भाष्य : व्यक्ति किस रस का प्रेमी है ? उसकी खानपान में कैसी अभिरुचि है ? या गर्भिणी की दोहद-इच्छा क्या है ? इत्यादि का निश्चय करने के लिए ग्रहों के रसप्रतिनिधित्व का ज्ञान आवश्यक है। यहाँ आचार्य ने सूर्य आदि ८ ग्रहों को ६ रसों का प्रतिनिधि माना है ।
सामान्यतया मधुर, अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कुटुक (कड़वा), कषाय (कसैला), एवं तीक्ष्ण छः रस होते हैं। सूर्य और मंगल दो ग्रह कड़वे रस के, शनि और राहु ये दो ग्रह तीक्ष्ण रस तथा शेष चार ग्रह अन्य चार रसों के प्रतिनिधि माने गये हैं। इस प्रकार चन्द्र, बुध, गुरु एवं शुक्र ये चारों ग्रह यथा क्रम से नमकीन, कसैला, मधुर एवं खट्टे रस के प्रतिनिधि हैं
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