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पाती नहीं है । क्योंकि मेष, सिंह, धनु राशियों का क्षत्रिय वर्ण वृष, कन्या एवं मकर का वैश्य वर्ण; मिथुन, तुला एवं कुम्भ का शूद्र वर्ण और कर्क, वृश्चिक एवं मीन का विप्रवर्ण माना गया है । तात्पर्य यह है कि यहाँ वर्ण व्यवस्था राशियों, उनके गुणधर्म एवं कर्म के अनुसार निश्चित की गयी है । इस सन्दर्भ में यहाँ ब्राह्मण का अर्थ है वह व्यक्ति जो त्याग, तपस्या, दूसरों की भलाई में तत्पर हो, ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त हो तथा जिसका जीवन आदर्श हो । अतः विभिन्न विषयों के मर्मज्ञ विद्वान, वैज्ञानिक, अन्वेषक, शोधकर्ता, बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी आदि सभी व्यक्ति इस वर्ग में आते हैं । इसी प्रकार जो लोग देश में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने में तत्पर हैं, देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा में लगे हुए हैं वे सब क्षत्रिय वर्ण के हैं। देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले, खेती एवं अन्य उत्पादनों में संलग्न, तथा व्यापार में लगे हुए व्यक्ति वैश्य वर्ण के हैं । कायिक, वाचिक एवं मानसिक तीनों प्रकारों से देश एवं समाज की सेवा में संलग्न व्यक्ति शूद्र वर्ण के हैं । किन्तु जो लोग देश और समाज में अव्यवस्था फैलाने वाले हैं, समाज-विरोधी गतिविधियों में संलग्न हैं तथा येन-केन प्रकारेण स्वार्थसिद्धि में तत्पर हैं, वे मलेच्छ या चाण्डाल जाति के हैं । इस प्रकार व्यक्ति के विभिन्न क्रिया-कलापों एवं राशियों के आधार पर उसके वर्ण का निर्धारण कर लेना चाहिए ।
गुरु और शुक्र का ब्राह्मण वर्ण है । सूर्य और मंगल क्षत्रिय वर्ण है । बुध शूद्र, चन्द्रमा वैश्य और शनि एवं राहु म्लेच्छ ( चण्डालादि) जाति के प्रतिनिधि हैं । अतः प्रश्न लग्न से जिस ग्रह का सम्बन्ध हो, वह ग्रह जिस वर्ण या जाति का प्रतिनिधि
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