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( ३७ ) सूर्य राजा, चन्द्रमा तपस्वी, मंगल सुनार, बुध ब्राह्मण, गुरु व्यापारी, शुक्र वैश्य, शनि सेवक और राहु निषाद (भील या हिंसक है)- सब कार्यों में यह विचार करना ठीक है।
भाष्य : जीव-प्रश्न में जाति का ज्ञान पहले किया जा चुका है। अब उसका कर्म या व्यवसाय जानने के लिए ग्रहों की वृत्ति का विचार किया जा रहा है। आजीविका या व्यवसाय का चुनाव करने के प्रश्न में भी यह निर्णायक भूमिका अदा करता है।
एक और बात यहाँ ध्यान देने योग्य है कि उक्त दोनों श्लोकों में राजा, तपस्वी एवं स्वर्णकार आदि शब्द अपने शब्दार्थ में रूढ़ न होकर व्यापक अर्थ में प्रयुक्त किये गये हैं। ये शब्द एक विशेष प्रकार की वृत्ति और प्रकृति की ओर संकेत करते हैं। उदाहरणार्थ, सूर्य को राजा कहा गया है। राजा का तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो अपने क्षेत्र में शीर्षस्थ हो और सब कुछ निर्णय करने में प्रायः स्वतन्त्र हो । अतः राजा राजनैतिक नेता, मन्त्रिमण्डल के सदस्य शासन के उच्चाधिकारी, विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, स्वायत्त संस्था के अध्यक्ष, नगर, जनपद एवं ग्रामों के स्थानीय शासन निकाय के प्रमुख तथा विभिन्न संस्थाओं के प्रधान आदि सभी सूर्य के प्रभाव में आ जाते हैं।
चन्द्रमा तपस्वी है। तपस्वी का अभिप्राय उस व्यक्ति से है, जिसका जीवन त्याग, तपस्या एवं परोपकार के लिए विसर्जित हो। इसलिए त्याग एवं तपस्या करने वाले समस्त संन्यासी, मुनि, योगी, धर्माचार्य एवं विभिन्न धर्मों के आस्तिक अनुयायियों के साथ-साथ समाज सेवी, स्वतन्त्रता संग्राम के
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