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( २५ ) यहाँ ग्रहों के उक्त प्रतिनिधित्व या कारकत्व का निरूपण किया है। प्रश्न से सम्बन्धित कोई भी कार्य कब होगा? यह निर्णय करने के लिए ग्रहों के इस प्रतिनिधित्व का ज्ञान होना आवश्यक है । उदाहरणार्थ-लाभ किस समय होगा ? विवाद या मुकदमे का निर्णय किस समय होगा? कोई भी वस्तु कब खोई अथवा कब मिलेगी ? प्रसव या वृष्टि कब होगी? इत्यादि अनेक प्रश्नों के प्रसंग में इससे काल निर्णय करने में सहायता मिलती है।
बुध और गुरु प्रातःकाल के प्रतिनिधि हैं। अतः यदि प्रश्नकाल में बुध या गुरु बलवान् होकर लग्न में स्थित हों, या लग्न को देखें अथवा कार्येश से युक्त दृष्ट हों, तो प्रश्न से सम्बन्धित कार्य प्रातःकाल में होगा। यदि बलवान् सूर्य और मंगल का पूर्वोक्त रीति से लग्न अथवा कार्येश से सम्बन्ध हो, तो कार्य दोपहर के समय होगा। इसी प्रकार शुक्र और चन्द्रमा के द्वारा अपराह्न तथा शनि और राहु के द्वारा सायंकाल जानना चाहिए । इस रीति से तात्कालिक प्रश्नों के कार्यनिर्णय में काफी सहायता मिलती है। वर्षाकाल में वृष्टि का ज्ञान, आसन्नप्रसवा का प्रसवकालनिर्णय, दैनिक तेजी-मन्दी एवं अन्य दैनन्दिन कार्यों में उक्त रीति से कालज्ञान सुगमतापूर्वक किया जा सकता है।
तिर्यग्दृशौ बुधसितौ भौमाकौं व्योमदर्शिनौ ।
जीवेन्दू समदृष्टी च शनिराहू त्वधोवृशौ ॥२५॥ अर्थात् बुध और शुक्र की तिरछी दृष्टि है। मंगल और सूर्य की ऊर्ध्वदृष्टि है। गुरु और चन्द्र की समदृष्टि (सन्मुखदृष्टि) तथा शनि और राहु की अधोदृष्टि है।।
भाष्य : नष्ट अथवा अज्ञात वस्तु किस स्थान में है ?
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