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( २३ ) इन्हें छाया-ग्रह कहा गया है। रेखागणित का मान्य नियम है कि दो वृत्तों का स्पर्श एक बिन्दु पर किन्तु सम्पात दो स्थानों पर होता है और इन दोनों स्थानों का अन्तर १८० अंश होता है। ६ राशियों का मान भी १८० अंश के तुल्य होता है । अतः राहु जिस राशि के जितने अंश पर स्थित है, उससे ७वीं राशि के उतने ही अंश पर केतु की स्थिति स्वयं सिद्ध हो जाती है।
राहु एवं केतु परस्पर ७वीं राशि में स्थित विलोम (वक्री) गति से चलते हैं। इनकी दैनिक गति ३ कला ११ विकला है। ये एक राशि का उपभोग १ वर्ष ६ मास में तथा सम्पूर्ण राशि चक्र का भ्रमण १८ वर्ष में करते हैं, जिसे भगण भोग काल कहा जाता है । इस प्रकार वक्री गति से चलते हुए ये दोनों जब सूर्य एवं चन्द्र के साथ योग करते हैं, तब सूर्य एवं चन्द्रग्रहण पड़ता है। विभिन्न राशियों में इनकी स्थिति का फल ज्योतिषशास्त्र में विस्तार से कहा गया है। ____ अंश और भाग शब्द क्रमशः नवमांश एवं त्रिंशांश के पर्यायवाची शब्द हैं। ६. अथ ग्रहस्वरूपादिद्वारम्
भार्गवेन्दु जलचरौ ज्ञजीवौ ग्रामचारिणौ।
राहुक्षितिजमन्दार्काः अबतेऽरण्यचारिणः ॥२३॥ अर्थात् चन्द्रमा और शुक्र जलचर हैं। बुध और गुरु ग्रामचारी हैं तथा राहु, मंगल, शनि और सूर्य वनचर हैं ऐसा विद्वानों का कथन है। ___ भाष्य : सूर्यादि ग्रहों को यहाँ जलचर, ग्रामचर और वनचर-इन तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। प्रायः ऐसा ही
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