________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २१ )
तथा राहु का स्वरूप आदि शनि के समान है । (यद्यपि ) राहु दुष्ट (पाप) ग्रह है, किन्तु मित्र ( बुध और शनि) की राशि में उदासीन रहता है तथा कन्या और मिथुन राशियों में यह कुछ शुभ फल भी देता है ।
भाष्य : यद्यपि राहु और केतु का कोई बिम्ब आकाश मे दिखलाई नहीं देता । ये दोनों सूर्य और चन्द्रमा की कक्षाओं के सम्पात बिन्दु होने के कारण तमोग्रह या छायाग्रह कहे गये हैं । किन्तु ये दोनों ग्रहगति एवं ग्रहणादि में महत्त्वपूर्ण कारण हैं । अतः फलित शास्त्र के आचार्यों ने इन्हें स्वतंत्र ग्रह के रूप में स्वीकार किया है । स्वभावतः तमोमय स्वरूप होने के कारण राहु पाप ग्रह है । तथा शनि के समान इनका वर्ण काला माना गया है ।
श्लोक १८ में सामान्यतया यह कहा गया है कि जो बुध की उच्च राशि है, वह राहु की स्वराशि मानी गई है तथा जो बुध की स्वराशि है वह राहु की उच्च राशि कही गयी है । ग्रन्थकार श्लोक १६ में इसको स्वयं स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि कन्या राहु की स्वराशि, मिथुन उच्च एवं धनु नीच है ।
राहु स्वभावतः पापग्रह है ।" किन्तु वह अपने मित्र बुध, शुक्र और शनि की राशियों (मिथुन, कन्या, वृष, तुला, मकर एवं कुम्भ ) में पाप फल न देकर उदासीन रहता है । किन्तु मिथुन और कन्या में स्थित वह अपने नैसर्गिक पाप प्रभाव को छोड़कर कुछ शुभ फल देता है । कारण यह है कि राहु के ३ मित्र ग्रह हैं
१. (अ) भौममन्दार्क भोगीन्द्रा प्रकृत्या दुःखदा नृणाम भुवनदीपक श्लोक ४२ (आ) क्षीणेन्द्रर्क कुजाहिकेतु रविजाः पापाः सपापश्च वित् ।
For Private and Personal Use Only