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बीदर / 3
इसे अग
किले का पुननिर्माण कराया, महल बनवाये और बगीचे लगवाये। सन् 1656 में औरंगजेब ने
ने साम्राज्य में मिला लिया। किसी समय बहमनी साम्राज्य दक्षिण में कांजीवरम, उत्तरपूर्व में राजमुंडी और गोआ तक फैला हुआ था।
वर्तमान बीदर एक जिला मुख्यालय है। धरती लाल है, मगर लोग सहजस्वभावी हैं। यह तीन भाषाओं हिन्दो, मराठो और कन्नड़ का संगम-स्थान है। यहाँ हिन्दी अच्छी तरह बोली और समझी जाती है। चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मन्दिर
यह नान इस मन्दिर में नागरी लिपि में भी लिखा है। यह एक छोटा-सा मन्दिर है जो कि रेलवे स्टेशन और बस-स्टैण्ड के पास छत्री चौक के समीप स्टेशन-रोड पर स्थित है। यह मन्दिर बहुत पुराना है और समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। इस मन्दिर में दसवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक की प्राचीन प्रतिमाएँ हैं।
मन्दिर में इस समय मूर्तियाँ इस प्रकार हैं-पद्मासन चन्द्रप्रभ (संगमरमर), कायोत्सर्ग पद्मप्रभ (पंचधातु), नौ फणों से युक्त पद्मासन पार्श्वनाथ (संगमरमर), सिद्ध-परमेष्ठी की धातु-प्रतिमा, धातु की ही चन्द्रप्रभ की प्रतिमा, पद्मासन पार्श्वनाथ की प्रतिमा जिस पर सर्प का लांछन है, एक चौबीसी (कांस्य) जो कि कुछ घिस गई है और सम्भवतः 15 वीं शताब्दी की है । पद्मावती और क्षेत्रपाल की भी प्रतिमाएँ हैं।
मन्दिर पंचायती है। यहाँ जैनियों के 15 घर हैं। मन्दिर का प्रबन्ध दिग० जैन मन्दिर पंचमण्डल द्वारा किया जाता है। पता है-श्री दिग० जैन मन्दिर पंचमण्डल, शाहगंज, पो०बीदर 585401 (कर्नाटक)।
यहाँ ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है।
बीदर का महत्त्व किसी सिद्धक्षेत्र या अतिशयक्षेत्र के रूप में नहीं है किन्तु कमठान के अतिशययुक्त मन्दिर को जाने के लिए वही एक मार्ग है। किला और संग्रहालय
यहाँ एक क़िला है जो कि ध्वस्त अवस्था में है। उसमें कार या बस द्वारा जाया जा सकता है। इसके रंगीन महल गगनमहल, नौबतखाना और बादशाहों की कब्र देखने के लिए पर्यटक आते हैं। विशेषकर लकड़ी के खम्भों पर नक्काशी देखने लायक है।
___ इस किले के एक बुर्ज में कर्नाटक दरवाज़ा भी है। ऐसा कहा जाता है कि शत्रु पर ऊपर से गरम पानी डालने का प्रबन्ध भी इस किले में था। ... किले में एक संग्रहालय (म्युजियम) भी है। उसके बाहर एक दिगम्बर जैन मूर्ति का धड़ रखा हुआ है। संग्रहालय में दसवीं शती की एक भव्य चौबीसी भी है, जिसके मूल नायक हैं तीर्थंकर ऋषभदेव (देखें चित्र क्र० 1)।
बीदर कारीगरी के लिए भी प्रसिद्ध है। बीदरी कार्य की वस्तुओं की प्रसिद्धि हैदराबाद के चारमीनार के आसपास के बाज़ार में प्रत्यक्ष देखी जा सकती है।