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2 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
राजा जैन थे। उन्होंने यहाँ सुन्दर मन्दिर बनवाकर नगर का निर्माण कराया होगा। इसी से यह स्थान 'नवनन्द देहरा' कहा जाने लगा। कर्नाटक सरकार द्वारा प्रकाशित बीदर के गजेटियर में इस नाम का अर्थ 'नन्द राजाओं द्वारा शासित' (ruled by Nandas) दिया गया है। उसमें कहा गया है कि पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के नन्द राजाओं ने कलिंग (उड़ीसा) पर विजय प्राप्त कर दक्षिणा-पथ पर भी अधिकार कर लिया था। इससे भी जैन धर्म का कर्नाटक में प्रसार चन्द्रगुप्त मौर्य के मुनि रूप में श्रवणबेलगोल पहुँचने से पहले का सिद्ध होता है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही तो चाणक्य की सहायता से नन्द राजा का तख्ता पलट दिया था। __नन्द-राजाओं के बाद यह प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकार में आ गया था। चन्द्रगुप्त के पोते अशोक ने भी यहाँ अपने महामात्य नियुक्त किये और कुर्नूल, रायचूर, बल्लारी तथा चित्रदुर्ग जैसे स्थानों पर अपने धर्मलेख खुदवाए। ये स्थान बीदर के दक्षिण में हैं। उस समय की धार्मिक स्थिति का उल्लेख उपर्युक्त गजेटियर में इस प्रकार किया गया है
"उन दिनों इस प्रदेश में जैनधर्म और बौद्धधर्म मानने वालों की संख्या काफ़ी थी। उस अवधि में दक्षिण में प्राकृत को सरकारी काम-काज की भाषा बनाया गया था और उसकी यह स्थिति अनेक शताब्दियों तक बनी रही।"1
___मौर्य राजाओं के वाद इस प्रदेश पर सातवाहन (172 ईसा पूर्व से 203 ईस्वी) और वाकाटक राजाओं (255 ईस्वी से 510 ईस्वी) का शासन रहा। उनके बाद यह प्रदेश राष्टकट राजाओं के अधिकार में चला गया जिनके युग में 'आदिपुराण' के रचयिता आचार्य जिनसेन द्वितीय और 'उत्तरपुराण' के कर्ता आचार्य गुणभद्र हुए।
गजेटियर में कहा गया है कि "राष्ट्रकूट राजाओं के शासनकाल में कन्नड़ साहित्य की खूब अभिवृद्धि हुई जिसमें जैन लेखकों का प्रमुख योगदान था। 'कविराजमार्ग' वाव्य शारत्र का एक ऐसा ग्रन्थ है जिसका आज भी अध्ययन किया जाता है।"
कालान्तर में बीदर कल्याणी के चौलुक्य राजाओं की भूमि का एक महत्त्वपूर्ण अंग बना। इस राजवंश ने 1074 से 1190 तक इस प्रदेश पर शासन किया था। चौलुक्य राजा बिज्जल (1156-1167) जैनधर्म का अनुयायी था। (कछ विद्वान यह भी मानते हैं कि बिज्जल शैव था। किन्तु यदि ऐसा होता तो वह वीरशैव मत के प्रचारक बसव के विरुद्ध क़दम नहीं उठाता।) बाद में यह प्रदेश वारंगल के काकतीय शासकों के अधिकार में आ गया। उनके बाद इस पर दिल्ली के सुलतान मुहम्मद बिन तुगलिक का अधिकार हो गया। तुगलक के बाद यह प्रदेश गुलबर्गा के बहमनी शासकों के अधीन चला गया। नौवें बहमनी शासक ने बीदर को अपनी राजधानी बनाया;
1. "There was a considerable following of Jainism and Buddhism in this region in those times. Prakrit was introduced as the official language in the Deccan during the period and it continued to hold that position for several centuries more."
2. "The Rastrakuta times witnessed efforescence of Kannada literature at the hands of mainly Jain writers. The Kavirajamarg is a work on poetics and it is even to-day in constant reference (P. 37).