Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतमकरणम् ] तृतीयो भागः।
[६७] (३०७६) विपञ्चमूल्यादिघृतम् । शृते नागरदुःस्पर्शशठीपिप्पलीपोष्करैः। (च. सं. । चि. स्था. अ. १९; वं. से. । प्र.)। कल्कैः कर्कटशृजया च समैः सपिर्विपाचयेत् ।। द्वे पञ्चमूले सरलं देवदारु सनागरम् । सिद्धेऽस्मिन्चूर्णितो क्षारौ द्वौ पश्चलवणानि च । पिप्पली पिप्पलीमूलं चित्रकं हस्तिपिप्पलीम् ॥ दत्त्वा युक्त्या पिबेन्मात्रां क्षयकासनिपीडितः।। शणबीजं यवान्कोलान् कुलत्यान् सुरभी तथा । काथ-दशमूलकी हरेक चीज, त्रिफला पाचयेदारनालेन दधा सौवीरकेण वा ॥ | (हर्र, बहेड़ा, आमला ), भारंगी, साठ, चीता, चतुर्भागावशेषेण पचेत्तेन घृताटकम् । कुलथ, पीपलामूल, पाठा, बेर और जौ; सब स्वर्जिकायावशूका ख्यौ क्षारौ दत्त्वा च युक्तितः।। चोजें समान भाग मिलाकर ४ सेर लें और ३२ सेर सैन्धवोद्भिदसामुद्रविडानां रोमकस्य च । पानीमें पकाकर ८ सेर शेष रक्खें । ससौवर्चलपाक्यानांभागान् द्विपलिकान् पृथक् कल्क-सेट, धमासा, कचूर, पीपल, पोविनीय चूर्णितान् सिद्धोतत्तो वे द्वे पले पिबेत् । खरमूल, और काकडासिंगी; सब चीजें समान करोत्यग्निं बलं वर्ण्य वातघ्नभुक्तपाचनम् ॥ भाग मिली हुई १३ तोले ४ माशे लेकर पत्थर दशमूल, चीर, देवदारु, साँठ, पीपल, पीपला
पर पानीके साथ पीसलें । मूल, चीता, गजपीपल, सनके बीज, जौ, बेर, |
विधि-काथ, कल्क और २ सेर घी कुलथ, और शल्लको वृक्ष (शाल विशेष) की छाल
एकत्र मिलाकर पकावें जब काथ जल जाय तो समान भाग मिलाकर १६ सेर लें और सबको
धीको छानलें और ठण्डा करके उसमें जवाखार, अधकुटा करके १२८ सेर आरनाल, सौवीरक या दही
सज्जी खार और पांचां नमक का चूर्ण (२॥ तोले) में पकावें जब ३२ सेर शेष रह जाय तो छानले
मिला दें। और उसमें ८ सेर घी तथा १०-१० तोले सजी खार, यवक्षार, सेंधा, उद्भिद् लवण, समुद्रलवण,
यह घृत क्षयकी खांसीको नष्ट करता है । विडनमक, रोमकलवण, सञ्चलनमक और शोरा का (मात्रा-६ माशेसे १ तोले तक ।) कल्क मिलाकर काथ जलने तक पकावें ।
(३०७८) द्विपञ्चमूलाधं घृतम् (२) इसे १० तोलेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे
(ग. नि. । घृता.) अनि तीव्र होती है । यह बल वर्ण वर्द्धक और पाचक है।
द्वे पञ्चमूल्यौ त्रिनिकुम्भे (व्यवहारिक मात्रा १ से २ तोले तक ।) ससप्तपलं चित्रकशिमूलम् । (३०७७) विपश्चमूलाचं घृतम् (१) कुरण्टबीजं त्रिफलां गुडूची__(वं. से. | कास.)
मेरण्डमूलं मदयन्तिका च ॥ द्विपश्चमूलीत्रिफलाभार्गीशुण्ठीसचित्रकैः। पाठां सभार्गी सुषवीं सनीलां कुलित्यपिप्पलीमूलपाठाकोलयवैर्जले ॥ सरोहिषां पापकुचेलिकाश्च ।
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