Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम्
तृतीयो भागः।
[४४९]
-
wan
a
mummmmmmmmmunis
अरनी, आक, संभाल, बासा, नागबला, सन्निपात ज्वरकी घोर दाह, खांसी, श्वास, हिक्का करञ्ज, हुलहुल, चीता, ब्राह्मी, बनसरसों, भंगरा, (हिचकी), मलावरोध, अश्मरी और मूत्राघात को दन्ती, निसोत, अमलतास, तेजपात, सहदेवी, भी नष्ट करती हैं। अमरकन्द, सिरस, सदजटा, मण्डूकपर्णी, पीपल, मूत्राघातमें इन्हें दूधके साथ देना और बार गजपीपल, गूमा, मकोय ( काकमाची), गुना, बार तृणपञ्चमूलका हाथ पिलाना चाहिये। कालाभंगरा, योजनमल्लिका (हाफरमाली), आसारण,
पापरोगान्तको रसः धतूरा, नागकेसर, भांग और सफेद कोयल; इनमें
(पापायोगः) से प्रत्येकका स्वरस १-११ तोला लेकर क्रमशः
(र. चं. । क्षुद्रशे., रसें. चिं. म. ! अ. ९) १-१ रसको पत्थरके खरलमें लोहे की मूसलीसे
दुर्लभरस ३२१६ देखिये । घोटें; जब एकरस घोटते घोटते गाढ़ा हो जाय। तो उसे तेज धूप में सुखाकर उसमें दूसरा रस डाल । (४३३३) पारदगुटिका कर घोटें । अन्तमें ( सब रसेकि सूख जाने पर, (र. र. रसाय. ख. । उपदे. ७) उसमें ११-१। तोला सेंड (थूहर) का दूध, आकका कृष्णधत्तूरतैलेन पारदं घपयेदिनम् । दूध और बड़का दूध एक एक करके डालकर घोटें। त्रिलोहर्वेष्टितं बद्धं तत्कटयां वीर्यधारकम् ॥ जय लुगदी सी बन जाय तो उसमें हीरकी भस्म, शुद्ध पारदको एक दिन काले धतूरेके तैलमें अतीसका चूर्ण, शुद्ध कुचलेका चूर्ण, अभ्रक भस्म, घोटे फिर उसमें समान भाग त्रिलोह ( स्वर्ण, चांदी शुद्ध पारद और गन्धक, (दोनेांकी पृथत कजली और तान ) का बारीक चूर्ण मिलाकर धोटकर बनाकर), मीठा विष (शुद्ध वछनागका चूर्ण), शुद्ध गोली बनावें । हरतालका अत्यन्त महीन चूर्ण, सर्पविष, सोनामक्खी भरम और शुद्ध मनसिलका चूर्ण ५-५
। इसे कमरमें बानेसे वीर्यस्तम्भन होता है । माशे मिलाकर अच्छी तरह घोटें और फिर उसे | (४३३४) पारदद्रुतिः चांगेरी ( चूके ) के रसमें घोटकर तिलके भमान (र. का. धे. । गुल्गा. अ. २१ ) गोलियां बना लें।
| नो नरस्य केशांस्तु विमृद्योपलया धिया । सन्निपातके जिस रोगीको अनेक वैध अनेक निर्मलीकृत्य नीरेण गुममूक्ष्मान्हि खण्डकान् ।। प्रकारके उपचार करके जवाब दे चुके हैं। उसको भी । कृत्वा शरावमध्ये च स्थापयेदेकरात्रकम् । इसकी ४ गाली शीतल जलके साथ देकर गर्म कपड़ा नीहारे सम्पुटीकृत्य मृदाधश्छिद्रसंयुतम् ।। उढ़ाकर लिटा देना चाहिये और प्यास, शीतल आकाशयन्त्रके वहि कुक्कुटेन पुटेन तु। जल देना चाहिये । इससे पसीना आकर ज्वर दत्त्वा तच्छिद्रतो बिन्श्छ्वे त पीतमुलोहितान् ।। नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त थे गोलियां गृहणीयान च तान्क शान्केशलमितीरितम् ।
For Private And Personal Use Only