Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
हलीमक, श्वास, खांसी, क्षय, ज्वर, शोथ, उदररोग, (४४२२) पुनर्नवादिमण्डूरम् । शूल, प्लीहा, आध्मान् , अर्श, ग्रहणीरोग, कृमिरोग, । (बं. से. । परिणामशूल.; र. का. धे. । शूला.) वातरक्त और कुष्टका नाश होता है। वर्षाभूवरुणो मानो लोहकिटन्तु पूतकम् । (४४२१) पुनर्नवामण्डूरम् (२)
भानी च समभागानि मूत्रे दशगुणे पचेत् ।।
अन्तर्धमविपकेन मधुसर्पियुतं लिहन । (भै. र.; वृ. मा.; च. सं.; ग. नि.; नि. र.; | वाताधिकं तथा पित्तं द्वन्द्वजं श्लेष्मजे तथा ।।
च. द.; वृ. मा.; र. र. । पाण्ड.) एष त्रिदोपज हन्ति शूलं हि परिणामजम् ।। पुनर्नवा त्रिवृच्छण्ठी पिप्पली मरीचानि च । पुनर्नवा, (बिसखपरा), बरनेकी छाल, मानविडङ्गं देवकाष्ठं च चित्रकं पुष्कराहयम् ।।
कन्द, शुद्ध मण्डूर और भरंगीका चूर्ण समान-भाग हरिद्राद्वितयं दन्ती त्रिफला चविका तथा। लेकर सबको दस गुने गोमूत्रमें पात्रका मुंह ढककुटजस्य फलं तिक्ता पिप्पलीमूलमुस्तकम् ।। । कर पकावें और जब गाढ़ा हो जाय तो स्निग्ध एतानि समभागानि मण्डूरं द्विगुणं ततः। पात्रमें भरकर सुरक्षित रक्खें । मूत्रे चाष्टगुणे पक्त्वा स्थापयेस्निग्धभाजने ॥ । इसे शहद और घीमें मिलाकर सेवन करनेसे पाण्डुशोषोदरानाहशूलार्शः कृमिरोगनुत् ॥ एकदोषज, द्वन्द्वज और सन्निपातज परिणामशूल
नष्ट होता है । ___ पुनर्नवा, निसोत, सांठ, मिर्च, पीपल, बाय
( मात्रा २ माशे ।) बिडंग, देवदारु, चीता, पोखरमूल, हल्दी, दारु
(४४२३) पुरन्दरवटी हल्दी, दन्तीमूल, हर्र, बहेड़ा, आमला, चव, इन्द्रजौ, कुटकी, पीपलामूल और नागरमोथा १-१
(र. चं.; र. सा. स.; र. रा. सु.; धन्व. कासा.) भाग तथा शुद्ध मण्डूर सबसे २ गुना लेकर सब
मूत्काविगुणं गन्धमेकधा कज्जलीकृतम् । को कूट छानकर आठ गुने ( १६ गुने ) गोमूत्र में त्रिकटुत्रिफलाचूर्ण प्रत्येकं मूतसम्मितम् ॥ पकावें और जब गाढा हो जाय तो उसे स्निग्ध अजाक्षीरेण सम्भाव्य वटिकां कारयेत्ततः । पात्रमें भरकर सुरक्षित रखें।
आईकस्य रसैः सेव्या शीतं तोयं पिबेदनु ।
कासश्वासप्रशमनी विशेषादमिवर्द्धिनी । इसके सेवनसे पाण्डु, शोष, उदररोग, आनाह, इयं यदि सदा सेच्या तदा स्याद् योगवाहिका।। शूल, अर्श और कृमिरोगका नाश होता है।
वृद्धोऽपि तरुणः शक्तः स्त्रीशतेषु वृषायते ॥ (मात्रा-१ माशा । अनुपान तक ।) १ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध गन्धक १च. सं.; और र. र. में पोखरमूलकी जगह ।
| की कज्जली बनाकर उसमें सेट, मिर्च, पीपल, हर्र, कुछ और कुटकीकी जगह पीपल लिखी है।
१ लोहकिटं मयूरकमिति पाठान्तरम् ।
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