Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य - रत्नाकरः ।
इसके सेवन से दुस्साध्य राजयक्ष्मा, शोथ, उदररोग, अर्श, ग्रहणी, ज्वर और गुल्मका नाश होता है।
मात्रा-आधा माशा ।
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[ ५२४ ]
(४४७७) प्राणनाथरस: (२)
( र. र. स. । उ. खं. अ. १४; र. चि. म. । स्तबक ११ )
द्वौ निष्कौ शुद्धगन्धस्य चतुर्निष्का वराटिका । एक कृत्य पुढे पाचयं पूर्व लोहविमिश्रितम् ॥ पूर्वोक्तस्तु द्रवैर्मर्य पुटेनैकेन पाचयेत् । चूर्णयेन्मरिचं सप्त तुत्थङ्कणयोर्दश ॥ मेलये पृथङ् निष्कं प्राणनाथाइयो रसः । भक्षयेन्निष्कपादार्द्धमसाध्यराजयक्ष्मनुत् || शोफोदराशग्रहणीज्वरगुल्महरं तथा ॥
अयोरजो विंशतिनिष्कमानं विभावितं भृङ्गरसाढकेन । धत्तूरभाङ्ग त्रिफलारसार्धं
तुल्यांशताप्यं विपचेत्पुटेषु ॥ सूतस्य निष्कं समभागतुत्थं
गन्धोपलौ द्वौ चतुरो वराटान् । पक्त्वा पुटा । समलोह चूर्णा
५ तोले त्रिफलेका काथ एक मिट्टीके शरावे में डालकर उसमें ५ तोले लोहभस्म डालकर मन्दाग्निपर सेकें । जब समस्त रस शुष्क हो जाय तो लोह भस्मको खरल में डालकर उसमें ५ तोल शुद्ध सोनामक्खीका चूर्ण मिला कर सबको १० तोले भंगरेके रस और ५-५ तोले त्रिफले और भरंगीके रसमें घोटें । तदनन्तर उसका एक गोला बनाकर उसे शराब–सम्पुटमें बन्द करके गजपुट मैं फूंकें। इसी प्रकार उसे उक्त तीनों रसों में घोट घोट कर तीन पुट दें । तत्पश्चात् उसमें ५-५ माशे पारे और बंग की भस्म तथा १० माशे शुद्ध गन्धक और २० माशे कौड़ीभस्म मिला कर पूर्वोक्त तीनों रसों में घोटकर गजपुट में फूंक दें। जब पुट स्वांग शीतल हो जाय तो उसमें
पवेत्तथा पूर्वसैर्विमिश्रान् ॥ चूर्णेऽस्मिन् मरिचाः सप्ततुत्थटङ्कणयोर्दश । संसृजेत्तत्पृथनिष्कान्प्राणनाथाइयोदितः ॥ अर्धपादो रसाद्भक्ष्यो केवलाद्राजयक्ष्मभिः । शोषोदरार्शोग्रहणीज्वरगुल्माद्युपद्भुतैः ॥
१००-१०० माशे शुद्ध लोह और सोनामक्खीके चूर्णको ८ सेर भंगरे के रस में थोड़ा थोड़ा रस डालते हुवे घोटें । तत्पश्चात् उसकी टिकिया बनाकर सुखाकर, शरावसम्पुट में बन्द करके यथाविधि गजपुटमें फूंकें । इसी प्रकार उसे क्रमशः धतूरा, भारंगी और त्रिफलाके ४-४ सेर रसमें घोट कर एक एक पुट दें ।
औषधको निकाल कर उसमें ३५ माशे काली मिर्चका चूर्ण तथा ५० माशे तुत्थभस्म और इतना ही सुहागा मिलाकर अच्छी तरह धोटकर रखें ।
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तत्पश्चात् उसमें ५ माशे शुद्ध पारा, ५ माशे शुद्ध तूतिया, १० माशे शुद्ध गन्धक और २० माशे कौड़ीका चूर्ण मिलाकर सबको उपरोक्त रसोंमें खरल करके गजपुटमें फूंकें । और फिर उसमें ३५ माशे काली मिर्चका चूर्ण तथा ५०-५० माशे सुहागेकी स्वील और तुत्थभस्म मिलाकर घोटकर सुरक्षित रक्खें ।
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