Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी
[७०९]
संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण | संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण ४२०१ पूतिकादि लेपः श्वेत कुष्ठ, दाद। ३६४५ नाराच रसः ऋष्य जिह्वक कुष्ठ । ४२०२ पूर्ण चन्द्र , समस्त प्रकारके कुष्ठ। ३६५८ निशादि वटी भयंकर कुष्ठ । ४२०३ प्रपुन्नाटादि, दाद
४२५९ पञ्चनिम्बादिचूर्णम् १८ प्रकारके कुष्ठ, ४२०४ "
त्वग्दोष, व्यङ्ग, नी४२०५ , " समस्त प्रकारके कुष्ठ,
लिका। सुप्ति, विवर्णता ।। ४२६० , "
विचर्चिका, उदुम्ब४७०८ बलादि , श्वेत कुष्ठ ।
र, पुण्डरीक, दद्रू, ४७०९ बाकुच्यादि,
कपालकुष्ठ, वातर४७१० बाणदलादि, दुष्ट कुष्ठ ।
क्तादि। ४७१७ बोल्ल जलम् दाद ।
इसे अधिक समय ४९१० भल्लातकादिलेपः किलास, तिल, का
तक सेवन करने लक, मस्से, चर्म
वाले पर सर्प विकील ।
घका प्रभाव नहीं ४९१६ भृङ्गराजादि , श्वेत कुष्ठ ।
होता। ४२७० पञ्चाननो रसः गजचर्म कुष्ठको १
मास में नष्ट कर नस्य-प्रकरणम्
देता है। ३१८० दन्त्यादि नस्यम् कुष्ठ, कृमि ।।
४३०८ परहित रसः समस्त प्रकारके कु
रस-प्रकरणम्
, ४३९३ पारिभद्रो रसः दाद, कुष्ठ। ३१९८ दशसार सूतरसः कुष्ठ, अर्श, श्वास, | ४४०० पिङ्गलेश्वर रसः समस्त प्रकारके खांसी।
कुष्ठ, पलित । ३३२५ धन्वन्तरि रसः समस्त कुष्ठ । ४४०५ पित्तलरसायनम् ।
समस्त कुष्ठ, विशे३६२५ नागराज रसः कष्टसाध्य कुष्ठको भी
षतः श्वेत कुष्ठ, अवश्य नष्ट कर देता
कृमि ।
४४४० प्रतापलकेश्वररसः विपादिका । ३६३३ नागादि वटी कुष्ठ, विचर्चिका, ४७३८ बाकुच्यादि लेहः समस्त प्रकारके
दाद ।
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