Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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संपा प्रयोगनाम ३२३० दार्वीरसक्रिया
३२३१ दार्व्यादि गण्डूषः ३२३२ दार्व्यादि घनः
२८६२ दाडिमाम्बु योगः २८७९ दुरालभादिकषायः २९०६ द्राक्षादि कल्कः
३२४७ धात्र्यादि काथः
३२४८ 97
कषाय-प्रकरणम्
२८३८ दशमूलादि काथः अष्टीला, वातकुण्ड
लिका, वातज मूत्रा
घात ।
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चिकित्सा - पथ-प्रदर्शिनी
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मुख्य गुण
मुखका नाड़ी व्रण,
रक्तदोष |
मुखपाक ।
मुखपाक, मुखका नाड़ी व्रण ।
मूत्राघात ।
मूत्रकृच्छू, दाह, शूल । मूत्रकृच्छ ।
सैंकड़ों योग से आ
राम न होनेवाला
(३६) मूत्रकृच्छ्रमूत्राघाताधिकारः
मूत्रकृच्छ्र ।
मूत्रकृच्छ्र, पीडा,
दाह ।
वेदना युक्त मूत्रा
घात ।
संख्या प्रयोगनाम
३६८४ निर्गुण्डी प्रयोगः ३६८५ निर्गुण्डीमूलचर्वणम्
४४९९ पथ्या योगः ४७७५ बीजपूर योगः
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३८२१ ४५६८ निल्वमूलादिकषायः
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४६०२ बृहत्यादि काथः
४६०६
गणः
३८२० पाषाणभेदादि काथः मूत्रावरोध, शुक्राश्मरी, शर्करा ।
४८१४ भृष्ठेक्षुरसपानम्
३३४८ नलादि
३३८० निदिग्धिकादि स्वरसः मूत्रकृच्छ्र । ३३८१ निदिग्धिकास्वरस
प्रयोगः सशोणित ऊष्णवात | ३८१७ पाषाणभेदादिकषाय भयङ्कर मूत्रकृच्छ्र । ३८१९ काथः
पीड़ा, दाह, मूत्रा
वरोध, मूत्रकृच्छ । ४८६९ भद्रावह
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२९५५ दाडिमादि योग:
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३२९७ धान्यगोक्षुरघृतम्
मुख्य गुण
उपजिह्वा ।
कण्ठशालक, उप
पूर्ण-प्रकरणम्
जिह्वा । प्रसेक |
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[ ७४१ ]
मूत्रकृच्छ नाशक,
हथ ।
१९७३ देवदार्वादि चूर्णम् मूत्राघात ।
३९१६ पाटलाभस्म योगः ४८१८ भद्रादि चूर्णम्
घृत-प्रकरणम्
की दुर्गन्ध ।
मूत्रावरोध | मूत्रकृच्छ्रको ३ दि
में नष्ट करता है।
त्रिदोषज मूत्रकृच्छ्र । अरुचि, हल्लास, मू
त्रकृच्छ ।
मूत्रकृच्छ्र ।
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मूत्राघात, मूत्रकृच्छ्र, भयङ्कर शुक्र दोष ।
उष्णवात ।
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