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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संपा प्रयोगनाम ३२३० दार्वीरसक्रिया ३२३१ दार्व्यादि गण्डूषः ३२३२ दार्व्यादि घनः २८६२ दाडिमाम्बु योगः २८७९ दुरालभादिकषायः २९०६ द्राक्षादि कल्कः ३२४७ धात्र्यादि काथः ३२४८ 97 कषाय-प्रकरणम् २८३८ दशमूलादि काथः अष्टीला, वातकुण्ड लिका, वातज मूत्रा घात । 39 " " www.kobatirth.org चिकित्सा - पथ-प्रदर्शिनी "1 मुख्य गुण मुखका नाड़ी व्रण, रक्तदोष | मुखपाक । मुखपाक, मुखका नाड़ी व्रण । मूत्राघात । मूत्रकृच्छू, दाह, शूल । मूत्रकृच्छ । सैंकड़ों योग से आ राम न होनेवाला (३६) मूत्रकृच्छ्रमूत्राघाताधिकारः मूत्रकृच्छ्र । मूत्रकृच्छ्र, पीडा, दाह । वेदना युक्त मूत्रा घात । संख्या प्रयोगनाम ३६८४ निर्गुण्डी प्रयोगः ३६८५ निर्गुण्डीमूलचर्वणम् ४४९९ पथ्या योगः ४७७५ बीजपूर योगः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ३८२१ ४५६८ निल्वमूलादिकषायः 97 "" ४६०२ बृहत्यादि काथः ४६०६ गणः ३८२० पाषाणभेदादि काथः मूत्रावरोध, शुक्राश्मरी, शर्करा । ४८१४ भृष्ठेक्षुरसपानम् ३३४८ नलादि ३३८० निदिग्धिकादि स्वरसः मूत्रकृच्छ्र । ३३८१ निदिग्धिकास्वरस प्रयोगः सशोणित ऊष्णवात | ३८१७ पाषाणभेदादिकषाय भयङ्कर मूत्रकृच्छ्र । ३८१९ काथः पीड़ा, दाह, मूत्रा वरोध, मूत्रकृच्छ । ४८६९ भद्रावह " २९५५ दाडिमादि योग: For Private And Personal Use Only ३२९७ धान्यगोक्षुरघृतम् मुख्य गुण उपजिह्वा । कण्ठशालक, उप पूर्ण-प्रकरणम् जिह्वा । प्रसेक | 37 [ ७४१ ] मूत्रकृच्छ नाशक, हथ । १९७३ देवदार्वादि चूर्णम् मूत्राघात । ३९१६ पाटलाभस्म योगः ४८१८ भद्रादि चूर्णम् घृत-प्रकरणम् की दुर्गन्ध । मूत्रावरोध | मूत्रकृच्छ्रको ३ दि में नष्ट करता है। त्रिदोषज मूत्रकृच्छ्र । अरुचि, हल्लास, मू त्रकृच्छ । मूत्रकृच्छ्र । "" " मूत्राघात, मूत्रकृच्छ्र, भयङ्कर शुक्र दोष । उष्णवात ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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