Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[७६८]
चिकित्सा-पथ-प्रदर्शिनी
-
इत्यादि।
संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण । संख्या प्रयोगनाम मुख्य गुण
और वातव्याधि ना- ४५३० फल घृतम् योनिशुल, योनिविशक; तथा गर्मि
भ्रंश, योनिका बाणीके लिये हित
हर आ जाना कारी। ४०१५ पञ्चजीरक पाकः प्रसूत रोग, योनि । ४६५७ बलादि , इसके प्रभावसे खी रोग, कृशता।
गर्भ धारण कर ४०३७ पुष्करलेहः सर्व उपद्रव युक्त
लेती है। पुराना प्रदर । ४८७० मदोत्कटार्य , सूतिका रोग, ग्रहणी ४८५६ भद्रोत्कटापवलेहः सूतिका रोग,
भौर पाण्डका नाश अफारा।
तथा दूधको शुद्ध
करता है। घृत-प्रकरणम्
तेल-प्रकरणम् ३२९० धात्री घृतम् सोमरोग, तृष्णा,
३१०० दाडिमाथं तैलम् स्तनांको उन्नत क.
दाह, मूत्ररोग।। ३२९१ , "
"
| ३३०५ धातक्यादि, सूतिका रोग । ३४९५ नीलोत्पलादि, रक्तप्रदर, पित्तज ।
३३०६ , , गुल्म।
सूजन युक्त, ऊप
रको उभरी हुई ३४९७ न्यग्रोधाचं , नीला, लाल, श्वेत,
तथा विप्लुता, उकाला और अन्य हर
पप्लुता शूल युक्त प्रकारका कष्ट साध्य प्रदर । योनिशुल,
| ५४९८ नतार्थ तैलम् योनि शूल, विप्लुता योनिदाह ।
योनि । ४०५७ पश्चपल्लवार्य , योनिकी दुर्गन्ध, आविविकार।
आसवारिष्ट-प्रकरणम् १०९४ पिप्पल्या , सूतिका रोग।
४१४९ पत्राङ्गासवः सफेद तथा लाल ४५२८ फल योनिदोष, रजोदोष,
• पीड़ा युक्त प्रदर, गर्मस्राव, बन्ध्यत्व ।
ज्वर, शोथ। १५२९ , " "
योनि ।
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