Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
चिकित्सा-पय-प्रदर्शिनी
[७१७] (२३) ज्वराधिकार संख्या प्रयोगमाम मुख्य गुण । संख्या प्रयोग नाम मुख्य गुण कषाय-प्रकरणम्
२८८
दि कषायः वातपित्तज ज्वर। २८२० दन्त्यादि काथः अभिन्यास सन्निपात, २८८१ , , वातज्वर पर अत्यन्त मलकी अधिकता ।
सरल योग । २८२२ दर्भमूलादिकाथः वातज्वर ।
२८८३ , , समस्त ज्वरनाशक, २८२३ दशमूलम् उपद्रवसहित सन्नि
अग्निवर्द्धक । पात, खांसी, तन्द्रा,
२८८४ , , ज्वर ।
पार्श्वशूल, कण्ठग्रह। | २८८५ , काथः ज्वर, दाह, तृष्णा, २८३१ दशमूलादि काथः कर्णक सन्निपात ।
रक्तपित्त । २८४१
उपद्रव सहित वात- | २८९० दुःस्पर्शादि , दाह, स्वेद, तृष्णा, ज्वर।
चित्तभ्रान्ति और २८४४ दशमूलादि पश्चद
श्वासयुक्त ज्वर । शाङ्ग काथः सन्निपात । २८९५ देवदार्यादि कषायः चातुर्थिक ज्वर। २८४८ दशमूली कषायः सन्निपात, श्वास, | २८९८ , काथः वातकफज्वर, खांसी खांसी, तृषा ।
गलग्रह। २८५० दशमूलीरसप्रयोगः कफवातज्वर, अति- २८९९ , " सन्धिगत सतत निद्रा, पार्श्वशूल,
ज्वर। श्वास, खांसी। २९०४ द्राक्षादि कल्कः । मुखशोष, अरुचि। २८५३ दशाष्टाङ्ग काथः जीर्णज्वर, शोथ,
( मुखमें मलनेकी श्वास, खांसी।
औषध है।) २८६५ दार्वादि काथः कफवातज्वर, हिका, । २९०५ । " सन्निपातमें जीभका श्वास, खांसी।
फटना और शुष्क २८६७ दाय॑म्बुदादि काथः सन्निपातञ्चरकी
होना । (जीभ पर मूर्छा।
मलनेका योग है) २८७३ दास्यादि काथः धातुस्थ विषमज्वर, । २९१० द्राक्षादि काथः । एकाहिक ज्वर।
बारीके समस्त ज्वर, २९१२ , , वातपित्त ज्वर। कामज्वर, शोकज्वर, | २९१३ , , भूसञ्चर, छदि।
दीपन, पाचन।
For Private And Personal Use Only
Loading... Page Navigation 1 ... 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773