Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[६२८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[भकारादि हृदयकी पीड़ा और अग्निमांयका नाश होता है ।। सकलिङ्गवचास्तुल्या द्विगुणाश्च यथोत्तरम् । यह दीपन और पाचन है।
लिह्यादन्तीत्रिवृदब्रायश्चूर्णिता मधुसर्पिषा ।। भूतभैरवचूर्णम्
कुष्ठममेहमृप्तीनां परमं स्यात्तदौषधम् ॥ (र. चं.; भा. प्र. । ज्वरा.)
चिरायता, नीमकी छाल, हर्र, बहेड़ा, आमला, रसप्रकरणमें देखिये।
पभाक, अतीस, पीपल, मूर्वा, पटोल, हल्दी, दारु(४८३४) भूधाच्यादियोगः
हल्दी, पाठा, कुटकी, इन्द्रायणकी जड़, इन्द्रजौ (कृ. नि. र. । प्रमेह.; यो. र. । प्रमेहा.)
और बच १-१ भाग, दन्ती २ भाग, निसोत ४ भूधात्री च त्रिगघाणं मरीचानां च विंशतिः।
भाग और ब्राह्मी ८ भाग लेकर कूट छानकर असाध्यान्साधयेन्मेहान् सप्तरात्राम संशयः॥
चूर्ण बनावें। भुईआमला ३ भाग और काली मिर्च २०
इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे सात दिन तक सेवन करनेसे असाध्य प्रमेह भी नष्ट हो जाते हैं।
कुष्ठ, प्रमेह और सुप्ति (सुन्नबहरी ) रोग नष्ट
होता है। इन रोगांकी यह एक उत्तम औषध है। (४८३५) भूनिम्बादिक्षारः । (च. सं. । चि. अ. १९ ग्रहण्य.; वा. भ. ।
( मात्रा--३-४ माशे । ) चि. अ. १० व. से. । ग्रहणी. ) (४८३७) भूमिम्बाचं चूर्णम् (१) भूनिम्बं रोहिणी तिक्तां पटोले निम्बपर्पटम् । दहेन्माहिषमूत्रेण क्षार एषोऽनिवर्दनः॥
( ग. नि.; वृ. नि. र.; यो. र. । ग्रहण्य.; यो. चिरायता, कुटकी, पटोल, नीमकी छाल और त.। त. २२; च. स. । चि. अ. १९ ग्रहणी.; पित्तपापड़ा समान भाग लेकर अधकुटा कर लें ग. नि. । चूर्णा.; व. से.; च. द.; वृ.
और फिर एक मजबूत हाण्डीमें १ भाग यह नि. र.; वृ. मा.; यो. र. । ग्रहण्य.) पूर्ण तथा ४ भाग भैसका मूत्र भरकर उसका मुख
भूनिम्बकौटजकटुत्रिकमुस्ततिक्ताः बन्द करके इतना पकावे कि सब चीजें जलकर उनकी भस्म बन जाय ।
कर्षांशकाः सशिखिमूलपिचुद्वयाः स्युः। इसके सेवनसे अग्नि दीत होती है।
त्वक्कौटजी पलचतुष्कमिता गुडाम्भ:( मात्रा-१॥-२ माशे ।)
पीतं नृणामिह हरेन्द्रहणीविकारम् ।। (४८३६) भूनिम्बादिचूर्णम्
.: चिरायता, कुड़ेके बीज (इन्द्रजौ ), सोंठ, (वा. भ. 1 चि. अ. । १९; ग. नि. । कुष्ठा.) | मिर्च, पीपल, नागरमोथा और कुटकी ११-१॥ भूनिम्बनिम्बत्रिफलापनकातिविषाकणाः। तोला, चीते की जड़ २॥ तोले और कुड़ेकी छाल मूर्वा पटोली द्विनिशा पाठातिक्तेन्द्रवारुणीः॥ २० तोले लेकर कूट छानकर चूर्ण बनावें ।
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