Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
तृतीयो भागः
[९६५]
शुद्ध मिलावा, पीपल, लोहभस्म और शिला- मिर्च, पीपल और गन्धकका चूर्ण १-१ पल जीत समान भाग लेकर एकत्र खरल करें। । (५-५ तोले ) मिलाकर सबको १ दिन नीबूके
रसमें घोटकर बेरकी गुठलीके बराबर गोलियां इसे या ल्हसनको यथोचित मात्रानुसार सेवन
बनाकर रख लें। करनेसे गुल्म नष्ट होता है।
__ इनके सेवनसे अजीर्ण, हृद्रोग, गुल्म, कृमि(मात्रा-४-६ रत्ती )
जन्य रोग, तिल्ली, अग्निमांद्य, आमवात, शूल, अति
सार, संग्रहणी, जलोदर, अर्श और अन्य बहुतसे (४९४०) भस्मवटी
वातकफज रोग नष्ट होते हैं । (र. रा. सु. । अजीर्णा.)
(४९४१) भस्मसूतरसः चूर्णीकृतं पश्चपलं तुषाम्ले स्विनं शिवायुग्विषतिन्दुवीजम् ।
(र. का. धे. । अ. १०) हिछु कृमिघ्नं त्रिपटु त्रिदीप्यं
अजाजीधान्यपथ्याभिः सक्षौद्रैः सकटुत्रिकैः। पलं पृथक् त्र्यूषणगन्धयुक्तम् ॥
एतैः सार्ध भस्मसूतः सद्यो वान्ति विनाशयेत् ॥ घूर्णीकृतं निम्बुरसेन भाव्यं
___जीरा, धनिया, हर्र और सोंठ, मिर्च तथा कोलास्थिमात्रा वटिका विधेया। पीपलका चूर्ण समान भाग लेकर उसमें पारदभस्म संसेविता हन्ति नृणामजीर्ण
मलाकर शहदके साथ चाटनेसे वमन शीघ्र ही द्रोगगुल्मं कृमिजांश्च रोगान् ॥
नष्ट हो जाती है । प्लीहामिमान्यात्र्तिमथामवातं
(चूर्णकी मात्रा १ से ३ माशे तक । पारद शूलातिसारं ग्रहणीरुजं च । भस्म १ से २ रत्ती तक । शहद २ तोले।) जलोदराशे कृमिजांश्च रोगा
| (१९४२) भस्मामृतरसः (१) निहन्यावहून् वातकफोद्भवांश्च ॥
(रसे. चि. म. । अ. ९) ५-५ पल कुचला और हर्रको कपड़ेकी पोटलीमें बांधकर दोलायन्त्र-विधिसे १ दिन कांजीमें
पलैकं मूञ्छितं सूतं मरिचं हिङ्गु जीरकम् । पकावें और फिर हरेकी गुठली निकाल दें और
प्रतिकर्ष वचाशुण्ठि तत्सर्वमार्कव द्रवैः ॥ कुचलेको छील डालें तथा उसके भीतरकी पत्ती भी
दिनं पिष्ट्वा लिहेन्मासं मधुना वह्निदीप्तये । निकाल दें । तदनन्तर दोनोंको पीस लें और हींग,
ककं भक्षयेच्चानु दाडिमं नागरं गुडैः॥ बायबिडंग, सेंधानमक, कालानमक, सांभर, देसी । मूञ्छित पारद ( कज्जली या रससिन्दूर ) अजवायन, खुरासानी अजवायन, अजमोद, सोंठ, । ५ तोले तथा काली मिरच, हींग, जीरा, बच और
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