Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अन्य ओषधियांका चूर्ण मिलाकर उसे सात दिन तक आकके दूधमें घोटें और फिर शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें फूंक दें । जब वह स्वांग शीतल हो जाय तो औषधको निकालकर पीस कर उसमें ५–५ तोले लौंग, काली मिर्च और फटकीका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटकर रक्खे ।
इसमेंसे २ रत्ती औषध सायङ्कालके समय खानेसे भोजन तुरन्त पच जाता है और १ पहर बाद फिर भोजनकी इच्छा हो जाती है । (४९५६) भुक्तोत्तरीयावटी (र. रा. सु. । अजीर्णा.)
भारत - भैषज्य रत्नाकरः ।
लगभग भक्तविपाकवटी सं. ४९३५ के समान
है । केवल इतना अन्तर है कि इसमें हरिताल और अभ्रकके स्थानमें ताम्र भस्म पड़ती है तथा भावना द्रव्योंमें तुलसीको जगह ज्योतिष्मती लिखी है और गुणोंमें निम्न लिखित स्लोक अधिक लिखे हैं:
विस वातकफानुबन्धे
भक्षयेत्तां वटीं प्रायो लवङ्गेन नियोजिताम् ॥ भक्तोत्तरीये बहुभोजने वा
आमानुबन्ध चिरमन्दवहौ ।
शोथोरे मेहगदेप्यजीर्णे ॥
शुले त्रिदोषे प्रभवे ज्वरे च
सम्यक् वटीं भुक्तविपाकसंज्ञा । सुखं विपच्याशु नरस्य कोष्ठं
मुहुर्मुहुर्वाव्छति भोजनं च ॥
अर्थात् इनमें से १-१ गोली लौंगके चूर्णके साथ सेवन करनेसे अधिक किया हुवा भोजन भी
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[ भकारादि
शीघ्र ही पच जाता है और बार बार भूख लगती है ।
इनके सेवनसे आमविकार, पुरानी मन्दाग्नि, कब्ज, वातकफज शोथोदर, प्रमेह, अजीर्ण, शूल और सन्निपात ज्वर नष्ट होता है । (४९५७) भूतनाथ भैरवरसः (र. का. धे. 1 अ. १) आकाशवल्लीरसतो रसं षोढा विभावयेत् । बृहतीफल द्रवैस्तालो मुनिविभावितः ॥ षद्भागप्रमितं सौम्यं धूर्तात्पञ्चदशद्रवैः । चतुरंशाष्टङ्कणस्य शिवाक्षेण विभावनाः ॥ षट्जैपालाहि फेनांशा लवङ्गमरिचानि च । शिवनेत्रपुटैस्त्रेधा वचा ब्राह्मी च बाकुची ॥ त्रित्र्यंशा भृङ्गराजस्य ददेद् द्वादश भावनाः । निम्बकाष्ठेन घृष्टोऽयं भूतनाथादिभैरवः ।। तत्तद्रोगानुपानेन सर्वज्वरहरो मतः ॥
(१) १ भाग पारेको ६ रोज तक अकास dah समें घोटें |
(२) १ भाग हरतालको बनभण्टेके फलेकि समें घोटें ।
(३) ६ भाग संखियेको १५ दिन धतूरेके रसमें घोटें ।
(४) ४ भाग सुहागेको रुद्राक्षके रस में घोट लें ।
(५) जमाल गोटा और अफीम ६ - ६ भाग तथा viग और काली मिर्च का चूर्ण ३-३ भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर उसे बच ब्राह्मी और बाबचीके रसको ३-३ भावना दें ।
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