Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिपकरणम]
तृतीयो भागः।
[६८३]
तोलेकी मात्रानुसार सेवन करनेसे रक्तार्श अवश्य | मधूकसारं तुल्यांशं बस्तमूत्रेण मर्दयेत् । नष्ट हो जाती है।
सत्रिपात प्रशमयेटैरवोक्तं रसायनम् ॥ इसके सेवनकालमें क्षार और तीक्ष्ण पदार्थों से परहेज करना चाहिये तथा शरीरपर तैलमर्दन
समुद्रफल, रुद्राक्ष, कालीमिर्च, सोंठ, पीपल, न करना चाहिये।
बच, कटेलीके बीज, सेंधा नमक, ल्हसन तथा
| महुवेका सार समान भाग लेकर सबका महीन (१९७५) भैरवरसायनम्
चूर्ण करके उसे बकरेके मूत्रमें घोटकर ( ३-३ (र. का. धे. । ज्वर. अ. १; वृ. नि. माशेकी ) गोलियां बना लें।
यो. र. । अपस्मारा.) समुद्रफलरुद्राक्षमरिचं नागरं कणा।
इनके सेवनसे सन्निपात और अपस्मार न गोलोमी बृहतीबीजं सैन्धवं लशुनं तथा॥ होता है।
इति भकारादिमिश्रमकरणम् ।
इत्यो३म्
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