Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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तैलपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[६४७]
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अथ भकारादितैलप्रकरणम्।
(४८८२) भद्राचं तैलम्
स्यान्मार्कवस्य च रसेन निहन्ति तैलं (ग. नि. । तैला.)
__नाडी कफानिलकृतामपचीत्रणांश्च ।।
भिलावा, आककी छाल, काली मिर्च, सेंधा भद्रश्रीदारुमरिचद्विहरिद्रात्रिधनैः ।
नमक, बायबिडंग, हल्दी, दारुहल्दी और चीतेका गोमूत्रपिष्टैः पलिकैविपस्यार्धपलेन तु ॥ ब्राह्मीरसार्कजक्षीरगोशकद्रससंयुतम् ।।
चूर्ण समान भाग मिश्रित १० तोले, तैल २ सेर प्रस्थं सर्वपतैलस्य सिद्धमाशु व्यपोहति ॥
और भंगरेका स्वरस ८ सेर लेकर सबको एकत्र
| मिलाकर पकावें । जब रस जल जाय तो तेलको पानाद्यैः शीलितं कुष्ठदुष्टनाडीव्रणापचीन् ।
छानलें। ___ सफेद चन्दन, देवदारु, काली मिर्च, हल्दी,
यह तैल नाडीव्रण (नासूर) और कफदारुहल्दी, निसोत और नागरमोथा ५-५ तोले
वातज अपची (गण्डमाला भेद) और व्रणोंको तथा शुद्ध बछनाग २॥ तोले लेकर सबको गोमू
नष्ट करता है के साथ पीसकर कल्क बनावें । तदनन्तर २ सेर
(४८८४) भल्लातकतैलम् (२) सरसके तैलमें यह कल्क और ब्राह्मीका रस, आकका दूध और गायके गोवरका स्वरस समान--
(यो. चि. म. । अ. ६ तैला.; हा. सं. । भाग-मिश्रित ८ सेर मिलाकर पकावें । जब
स्था. ३ अ. ४२)
भल्लातकं ज्युषणमक्षचूर्ण तैलमात्र शेष रह जाय तो उसे छान लें।
कुष्ठं च गुञ्जा त्रिफला च तैलम् । ___इसे पान, मर्दनादि द्वारा सेवन करनेसे कुष्ठ | पञ्चैव लवणानि विपाचितानि और दुष्ट नाड़ी ब्रण ( नासूर ) शीघ्र ही नष्ट हो
___ अभ्यङ्गतो हन्ति च कुष्ठदद्रुन् । जाते हैं।
भिलावा, सेठ, मिर्च, पीपल, बहेड़ा, कूठ, (४८८३) भल्लातकतैलम् (१) गुञ्जा ( चैटली ) हर, बहेड़ा, आमला और पांचों ( भै. र.; ध. व.; वृ. मा.; ग. नि. । नाडीव्रणा.;
नमक समान भाग मिलाकर २० तोले लें और
सबको पानीके साथ पत्थर पर पीस लें । तदनन्तर च. द. । नाडीव्रणा. ४५)
२ सेर तैलमें यह कल्क और ८ सेर पानी मिलाभल्लातकार्कमरिचैलवणोत्तमेन
कर पकावें। जब पानी जल जाय तो तैलको सिद्धं विडगरजनीद्वयचित्रकैश्च । छान लें ।
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